श्री विष्णु स्तुति: शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं...
श्री हरि विष्णु | श्री हरि विष्णु | श्री हरि विष्णु | श्री हरि विष्णु | श्री हरि विष्णु
भगवान श्रीं हरि विष्णु के इस मंत्र का नियमित जाप करने से साधक निडर बन जाता है क्योंकि यह मंत्र अवास्तविक दुनिया के डरो से बाहर निकालने का काम करता है।
विष्णु शान्ताकारं मंत्र का जाप सुबह जल्दी उठकर करना चाहिए भगवान की मूर्ति के सामने दीपक जलाकर भगवान को पानी व प्रसाद का भोग लागए और इस मंत्र का जाप करें।
|| विष्णु शान्ताकारं मंत्र ||
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥
विष्णु शान्ताकारं मंत्र ━ हिंदी अर्थ
मैं श्रीं हरि विष्णु को नमन करता हूं जो सृष्टि के पालक और रक्षक हैं, जो शांतिपूर्ण सर्प-शैय्या के ऊपर लेटे हुए हैं। जिनकी नाभि से कमल का पुष्प निकला है, जो ब्रह्मांड का आधार है और आकाश जैसा दिखता है। जो पूरी सृष्टि को चलाने वाला है, जो सर्वव्यापी है, जिनकी आंखें कमल के समान है, मैं सभी लोकों के स्वामी, लक्ष्मीपति भगवान विष्णु को नमस्कार करता हूं, जो भौतिक अस्तित्व के सभी भय को दूर करते हैं।
ब्रह्मा, वरुण, इंद्र, रुद्र और मरुत सभी दिव्य भजनों (स्तोत्रों) के साथ भगवान की स्तुति करते हैं। सामवेद का उच्चारण उपनिषदों में किया जाता है, जो सांग वेदों का क्रम है। जिसे योगी ध्यान में बैठा हुआ मन से देखता है, मैं भगवान के परम व्यक्तित्व को सादर प्रणाम करता हूं, जिन्हें देवता और राक्षस नहीं पहचान पाते। उन नारायण को मै नमस्कार करता हूँ।
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