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Showing posts with the label स्तोत्र संग्रह

Pitar-Stotra/Shri-Pitru-Kripa-Stotram/श्री पितृ कृपा स्तोत्रम्

श्री पितृ कृपा स्तोत्रम् — परिचय, महत्व और लाभ | Bhakti Gyan श्री पितृ कृपा स्तोत्रम्... श्री पितृ कृपा स्तोत्रम् हिन्दू धर्म में पितरों (पूर्वजों) की आराधना और तृप्ति हेतु एक अत्यंत प्रभावी एवं पावन स्तोत्र माना गया है। इसका पाठ करने से— पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है। परिवार में सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य बना रहता है। वंश में स्थिरता, संतान-सुख और कल्याण प्राप्त होता है। पितृदोष, पितृरिण तथा अनिष्ट बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इस स्तोत्र का उल्लेख गृहस्थ और श्राद्ध कर्म से जुड़े ग्रंथों में मिलता है। ऋग्वेद, अथर्ववेद तथा पुराणों में पितृ पूजन का महत्त्व बताया गया है। यह स्तोत्र आमतौर पर श्राद्ध पक्ष (पितृपक्ष) में अधिक पढ़ा जाता है, परंतु कोई भी व्यक्ति इसे श्रद्धा और नित्य संकल्प के साथ पाठ कर सकता है। ॥ श्री पितृ कृपा स्तोत्रम् ॥ हिन्दी अर्थ सहित पितृ ध्यान स्तुति श्वेतवर्णान् शुचिव्रतान् सोमसूर्याग्निलोचनान्। हिरण्यपात्रहस्तांश्च पितॄ...

Ganesha-Shri Ganapatyatharvashirsha/श्री गणपत्यर्थवर्धशीर्षम्

श्री गणपत्यर्थवर्धशीर्षम् | गणपति अथर्वशीर्ष का महत्व और लाभ श्री गणपत्यर्थवर्धशीर्षम् (गणपति अथर्वशीर्ष)... ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय श्री गणपत्यर्थवर्धशीर्षम् अथवा गणपति अथर्वशीर्ष उपनिषद का एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसे अथर्ववेद का अंग माना गया है और इसमें गणपति को सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म स्वरूप घोषित किया गया है। गणेश जी केवल विघ्नहर्ता ही नहीं, बल्कि ज्ञान, विज्ञान, आत्मबोध और मोक्ष के दाता माने गए हैं। इस उपनिषद का पाठ करने से साधक के जीवन में विघ्न दूर होते हैं, बुद्धि की वृद्धि होती है और परमात्मा के प्रति अडिग श्रद्धा जागृत होती है। ।। श्रीगणपत्यथर्वशीर्षम् ।। "मूल श्लोक" सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहे। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहे। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥ १ ॥ ऋतं वच्मि। सत्यं...

rahu-stotra/shri-rahu-stotra

राहु स्तोत्र | राहु ग्रह दोष निवारण का शक्तिशाली वैदिक उपाय श्री राहु स्तोत्र... राहु स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली वैदिक स्तोत्र है, जिसका पाठ राहु ग्रह की कृपा प्राप्त करने और उसकी अशुभ दशा, पीड़ा अथवा दोषों (जैसे कालसर्प दोष, राहु महादशा, ग्रहण योग, या राहु काल) को शांत करने हेतु किया जाता है। यह स्तोत्र राहु ग्रह के अशुभ प्रभाव को शांति देने हेतु विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। इसका नियमित पाठ रोग, शत्रु बाधा, मानसिक भ्रम, और ग्रहदोष से मुक्ति दिलाता है। यह स्तोत्र राहु देव के स्वरूप, उनके अद्वितीय गुणों, प्रभावों और ब्रह्मांड में उनके रहस्यमय स्थान का वर्णन करता है। ॥ श्री राहु स्तोत्र ॥ राहुर्दानवमंत्री च सिंहिकाचित्तनन्दन: । अर्धकाय: सदा क्रोधी चन्द्रादित्य विमर्दन: ।। 1 ।। रौद्रो रूद्रप्रियो दैत्य: स्वर्भानु र्भानुभीतिद: । ग्रहराज सुधापायी राकातिथ्यभिलाषुक: ।। 2 ।। कालदृष्टि: कालरूप: श्री कण्ठह्रदयाश्रय: । बिधुंतुद: सैंहिकेयो घोररूपो महाबल: ।। 3 ।। ग्रहपीड़ाकरो दंष्टो रक्तनेत्रो महोदर: । ...

Budhha-Stotra-Shri-Budh-Stotra-Every-Wednesday/ बुधवार को करें श्री बुध स्तोत्र का पाठ

श्री बुध स्तोत्र | बुध चालीसा | बुध ग्रह की कृपा पाने का उपाय श्री बुध स्तोत्र... "श्री बुध स्तोत्र" एक वैदिक स्तोत्र है जो बुध ग्रह (Mercury) की कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से बुध ग्रह के दोष (Budh Dosh) से मुक्ति, बुद्धि, वाणी, लेखन, व्यापार, शिक्षा और संवाद कौशल में वृद्धि हेतु अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। गणपति जगवंदन स्तुति (भक्त तुलसीदास जी द्वारा रचित यह स्तुति भगवान गणेश की सुंदर वंदना है। यह स्तोत्र बुध स्तोत्र या अन्य किसी शुभ कार्य के आरंभ में गाया जाता है।) "गाइए गणपति जगवंदन । शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥ सिद्धि सदन गजवदन विनायक । कृपा सिंधु सुंदर सब लायक ॥ गाइए गणपति जगवंदन । शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥ मोदक प्रिय मुद मंगलदाता । विद्या बारिधि बुद्धिविधाता ॥ गाइए गणपति जगवंदन । शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥ मांगत तुलसीदास कर जोरे । बसहिं रामसिय मानस मोरे ॥ गाइए गणपति जगवंदन । शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥" || श्री बुध स्तोत्र || (बुध ग्रह...

Dhoop Mantra-Nath Panthi-Agni–Dhoop Samarpan Stotra/धूप मंत्र

नाथ संप्रदाय का अग्नि–धूप समर्पण स्तोत्र नाथ संप्रदाय का अग्नि–धूप समर्पण स्तोत्र... "धूप मंत्र" एक अत्यंत पवित्र, शक्तिशाली और परंपरागत नाथ संप्रदाय का अग्नि–धूप समर्पण स्तोत्र है। यह मंत्र धूप ध्यान, होम, और गुरु आराधना के समय बोला जाता है, जिससे वातावरण शुद्ध हो, देवताओं का आह्वान हो, और साधना सफल हो। || धूप मंत्र – भावार्थ सहित || ॐ नमो आदेश। गुरुजीं को आदेश। ॐ गुरुजी। भावार्थ: यह मंत्र नाथ परंपरा का अभिवादन है। "आदेश" का अर्थ है – ईश्वर में तुम्हें नमस्कार है। पानी का बुंद, पवन का थंभ, जहाँ उपजा कल्पवृक्ष का कंध। भावार्थ: जल की बूँद और वायु के स्तंभ से जहाँ दिव्य कल्पवृक्ष प्रकट हुआ। कल्पवृक्ष की छाया, जिसमें गुग्गुल धूप उपाया। भावार्थ: उस कल्पवृक्ष की छाया में शुभ धूप प्रज्वलित की जाती है। जहाँ हुआ धूप का प्रकाश, जौ, तिल, घृत लेके किया वास। भावार्थ: धूप, घृत (घी), जौ, तिल आदि समर्पण से दिव्यता प्रकट होती है। धुनि धूपाया, अग्नि चढ़ाया, सिद्ध का मारक विरले पाया। भावार्थ: धूप से धूनी दी गई, अग्नि में चढ़ाया गया — सि...

Shiva Gorakh Dhyan/Guru Gorakhnath/शिव गोरख ध्यान

शिव गोरख ध्यान मंत्रात्मक रूप में शिव गोरख ध्यान मंत्रात्मक रूप में... "शिव गोरख ध्यान" एक अत्यंत पावन साधना है जिसमें भगवान शिव (आदि योगी) और गुरु गोरखनाथ (नाथ संप्रदाय के प्रमुख योगी) का एक साथ ध्यान किया जाता है। यह ध्यान योगियों, साधकों और नाथ पंथ के अनुयायियों के लिए विशेष रूप से कल्याणकारी माना जाता है। ॥ शिव गोरख ध्यान ॥ (भगवान शिव और गुरु गोरखनाथ का संयुक्त ध्यान) ॥ ध्यानम् ॥ वन्दे शिवं गोरखनाथं, योगमूर्ति द्विभुजधारिणम्। त्रिशूल डमरु कर-धृतं, चन्द्रार्धशेखरं शाश्वतम्॥ गौरवर्णं, जटाधारीं, वसुन्धरा पर विराजितम्। गोरक्षं भक्तवत्सलं, योगमार्गप्रदर्शकम्॥ नेत्रत्रयं शिवस्य शोभितं, योगाग्नि ज्वलदन्तरम्। गोरखनाथं गुरुश्रेष्ठं, ध्यायामि चित्तनिर्मलम्॥ शिवं शान्तं सदानन्दं, नाथं ज्ञानरूपिणम्। गोरक्षं सिद्धयोगीन्द्रं, चित्तरूपं नमाम्यहम्॥ ध्यान का भावार्थ (संक्षेप में) भगवान शिव योग के मूल स्रोत हैं। वे त्रिनेत्रधारी, त्रिशूलधारी, करुणामयी हैं। गुरु गोरखनाथ शिव के कृपापात्र शिष्य हैं जिन्होंने हठयोग, सिद्धयोग, और आत्मज्ञान का प्रच...