नाथ संप्रदाय का अग्नि–धूप समर्पण स्तोत्र...
"धूप मंत्र" एक अत्यंत पवित्र, शक्तिशाली और परंपरागत नाथ संप्रदाय का अग्नि–धूप समर्पण स्तोत्र है। यह मंत्र धूप ध्यान, होम, और गुरु आराधना के समय बोला जाता है, जिससे वातावरण शुद्ध हो, देवताओं का आह्वान हो, और साधना सफल हो।
|| धूप मंत्र – भावार्थ सहित ||
ॐ नमो आदेश। गुरुजीं को आदेश। ॐ गुरुजी।
भावार्थ: यह मंत्र नाथ परंपरा का अभिवादन है। "आदेश" का अर्थ है – ईश्वर में तुम्हें नमस्कार है।
पानी का बुंद, पवन का थंभ, जहाँ उपजा कल्पवृक्ष का कंध।
भावार्थ: जल की बूँद और वायु के स्तंभ से जहाँ दिव्य कल्पवृक्ष प्रकट हुआ।
कल्पवृक्ष की छाया, जिसमें गुग्गुल धूप उपाया।
भावार्थ: उस कल्पवृक्ष की छाया में शुभ धूप प्रज्वलित की जाती है।
जहाँ हुआ धूप का प्रकाश, जौ, तिल, घृत लेके किया वास।
भावार्थ: धूप, घृत (घी), जौ, तिल आदि समर्पण से दिव्यता प्रकट होती है।
धुनि धूपाया, अग्नि चढ़ाया, सिद्ध का मारक विरले पाया।
भावार्थ: धूप से धूनी दी गई, अग्नि में चढ़ाया गया — सिद्धि वही पाते हैं जो विरले होते हैं।
ऊर्ध्वमुख चढ़े, अग्निमुख जले, होम-धूप वासना होय ले।
भावार्थ: धूप ऊपर को उठती है, अग्नि में जलती है — उसमें भक्ति की सुगंध समर्पित होती है।
देवतागणों को धूप समर्पण (होम-धूप-वास):
इक्कीस ब्रह्माण्ड, तैंतीस कोटी देव-देवी को होम-धूप वास।
सप्त पाताल, नवकुली नाग, वासुकी को होम-धूप वास।
श्रीनाथजी के चरण कमलों को, धर्मराज, धर्मगुरु, देव को होम-धूप वास।
धरती, आकाश, वायु, जल, चंद्र, सूर्य, नक्षत्र, ताराग्रह – सबको होम-धूप वास।
संत-महात्माओं को श्रद्धा समर्पण:
नवनाथ, ८४ सिद्ध, अनंत कोटि सिद्धों को होम-धूप वास।
सदगुरु श्री जितेंद्रनाथजीं, भाऊमहाराज, हठेंद्रनाथ, देवेंद्रनाथ जीं को होम-धूप वास।
मच्छिन्द्रनाथ, कानिफनाथ, आदिनाथ महादेव, दत्तात्रेय, मीरादातार, राघवेंद्रनाथ – सभी को होम-धूप वास।
स्थानों व तत्वों को समर्पण:
थान, मान, मठ, मुकाम – अग्नि मुख, धूप पवन मुख वास।
जहाँ धूप – वहाँ देव। जहाँ देव – वहाँ पूजा। अलख निरंजन और न दूजा॥
फलश्रुति (पाठ का फल):
"इति मंत्र पढ़, धूप-ध्यान करे, सो योगी अमरापुर तरै।
बिना मंत्र धूप-ध्यान करे, खाय जरे, न वाचा फुरै॥"
भावार्थ: जो इस मंत्र से धूप ध्यान करता है, वह अमरता के पथ पर चलता है। जो बिना मंत्र करता है, उसे लाभ नहीं मिलता।
उपसंहार:
"इतना धूप का मंत्र जाप सम्पूर्ण सही, अनंत कोटि सिद्धों में श्रीनाथजी कहीं।
श्रीनाथजी गुरुजीं को आदेश। आदेश॥ आदेश॥"
भावार्थ: यह पूर्ण मंत्र है, जिसे स्वयं श्रीनाथ जी ने सिद्ध किया है। गुरु को आदेश (नमन), तीन बार।
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नवनाथ, ८४ सिद्ध, अनंत कोटि सिद्धों को होम-धूप वास।
सदगुरु श्री जितेंद्रनाथजीं, भाऊमहाराज, हठेंद्रनाथ, देवेंद्रनाथ जीं को होम-धूप वास।
मच्छिन्द्रनाथ, कानिफनाथ, आदिनाथ महादेव, दत्तात्रेय, मीरादातार, राघवेंद्रनाथ – सभी को होम-धूप वास।
स्थानों व तत्वों को समर्पण:
थान, मान, मठ, मुकाम – अग्नि मुख, धूप पवन मुख वास।
जहाँ धूप – वहाँ देव। जहाँ देव – वहाँ पूजा। अलख निरंजन और न दूजा॥
फलश्रुति (पाठ का फल):
"इति मंत्र पढ़, धूप-ध्यान करे, सो योगी अमरापुर तरै।
बिना मंत्र धूप-ध्यान करे, खाय जरे, न वाचा फुरै॥"
भावार्थ: जो इस मंत्र से धूप ध्यान करता है, वह अमरता के पथ पर चलता है। जो बिना मंत्र करता है, उसे लाभ नहीं मिलता।
उपसंहार:
"इतना धूप का मंत्र जाप सम्पूर्ण सही, अनंत कोटि सिद्धों में श्रीनाथजी कहीं।
श्रीनाथजी गुरुजीं को आदेश। आदेश॥ आदेश॥"
भावार्थ: यह पूर्ण मंत्र है, जिसे स्वयं श्रीनाथ जी ने सिद्ध किया है। गुरु को आदेश (नमन), तीन बार।
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