श्री गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा...
भगवान गुरु मच्छिन्द्रनाथ जी को समर्पित भक्तिपूर्ण "गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा" का एक सुंदर रूपांतरण है। यह चालीसा नाथ संप्रदाय के महान गुरु श्री मच्छिन्द्रनाथ जी के योग, ज्ञान और भक्ति से प्रेरित है।
गुरु मच्छिन्द्रनाथ जी का परिचय: | |||||||||||
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विषय | विवरण | ||||||||||
वास्तविक नाम | मीननाथ / मच्छेन्द्रनाथ / मत्स्येन्द्रनाथ | ||||||||||
सम्मानित नाम | श्री गुरु मच्छिन्द्रनाथ जी महाराज | ||||||||||
परंपरा | नाथ संप्रदाय (योगियों की परंपरा) | ||||||||||
शिष्य | श्री गोरखनाथ जी | ||||||||||
गुरु | स्वयं भगवान शिव (आदि योगी) | ||||||||||
विशेष योगदान | हठयोग का प्रवर्तन, कुंडलिनी जागरण का ज्ञान, तांत्रिक साधना का प्रचार | ||||||||||
भाषाएं/ग्रंथ | संस्कृत, प्राकृत, नाथ साहित्य में उल्लेख | ||||||||||
प्रमुख स्थान | नेपाल (पाटन), काठमांडू, भारत के कई हिस्से |
|| श्री गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा ||
(नाथ संप्रदाय के महान गुरु श्री मच्छिन्द्रनाथ जी को समर्पित)
॥ दोहा ॥
जय मच्छिन्द्रनाथ प्रभु, योगीश्वर भगवान।
नाथ-पंथ के मूल तुम, करो कृपा भगवान॥
॥ चौपाई ॥
जय हो योगी मच्छिन्द्रनाथा। सिद्धों में तुम परम परथा॥
नाथों के तुम आदि विधाता। योग मार्ग के परम प्रभाता॥
ध्यान लगायो कैलास धामा। शिव से पायो अमर स्थाना॥
ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र निहारे। योगी तेरे दर्शन वारे॥
माया से परे तुम्हारा ज्ञान। समुझ न पावें त्रिदेव महान॥
शिष्य तुम्हारे अति गुनवाने। गोरख जैसे महा सुजाने॥
योग तुम्हारा गूढ़ अनोखा। रचयो नाथों का जो लोका॥
चौरासी सिद्धों के नाथ। मच्छिन्द्र सबके रखे साथ॥
राजा बाले ते ज्ञान करावो। मोह त्यागि गुरु पद पावो॥
नाथ पंथ का दीप जलाया। अज्ञान तम को दूर भगाया॥
त्राटक, ध्यान, समाधि सिखाया। जीवन को अध्यात्म बनाया॥
मंत्र तंत्र सब तुम सिखावो। गूढ़ रहस्य सब बतलावो॥
सिद्ध योग के प्रथम आचारी। सब पर कृपा दृष्टि तुम्हारी॥
नागों से जो रक्षा करी। योग बल से माया हरी॥
भूत-प्रेत बाधा को हरते। नाथ तुम्हारे ध्यान धरते॥
संकट से जो भक्त उबारे। कृपा करो, दो तुम सहारे॥
तप में जो मन को लगावै। मच्छिन्द्र कृपा से वह पावै॥
दरिद्र दूर, मन शुद्ध होई। प्रभु की भक्ति दृढ़तम होई॥
रोग, शोक, भय नास करै। ध्यान तुम्हारा काज सफल करै॥
शरण पड़े जो तेरे द्वारे। भव-सागर से पार उतारे॥
चराचर में व्याप्त तुम ही। योगमाया के ज्ञाता तुम ही॥
पिंगला, इड़ा, सुषुम्ना ग्यानी। कुंडलिनी के अधिपति प्राणी॥
साधक जो गुरु को माने। सच्चा योग वही पहचाने॥
नाथ पंथ का रक्षक तू। योगीजन का भाग्य रचू॥
गोरखनाथ को ज्ञान दिया। सच्चा धर्म विधान किया॥
योग मार्ग का विस्तार किया। भक्तों को जीवन सार दिया॥
आदिनाथ से शक्ति पाई। सृष्टि में फिर राह दिखाई॥
गुरु रूप में रहो सहाई। मच्छिन्द्रनाथ कृपा बरसाई॥
ध्यान तिहारो फल देवे। मन में शांति, विवेक लेवे॥
भक्त तिहारो जस गावे। संकट में रक्षा पावे॥
योगीजन तुझसे सिख पाते। नाथ ज्ञान से भव तर जाते॥
सिद्ध, साधक, सभी पुकारे। मच्छिन्द्रनाथ रक्षा हमारे॥
घोर संकट में जो घेरै। मच्छिन्द्र कृपा सब दुःख हरै॥
जो भी नित्य नाम जपावे। उसके पाप कटे-सब जावे॥
ध्यान लगावै तेरा प्यारा। पावे तत्त्व-ज्ञान उजियारा॥
सच्चे भाव से जो गुण गावै। भव-जाल से मुक्त हो जावै॥
अमर ज्योति तेरी चमके। ज्ञान, भक्ति जीवन में दमके॥
चरणों में जो मन रमावै। जीवन सफल वही कहलावै॥
मच्छिन्द्रनाथ, नाथ महान। करो हमारी रक्षा महान॥
चालीसा जो पढ़े सुहाई। उस पर कृपा सदा रखो भाई॥
॥ दोहा ॥
जो पढ़े मच्छिन्द्र चालीसा, नित्य करे मन ध्यान।
सिद्धि, शांति, योग लाभ, पावै पूर्ण विधान॥
श्री गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा का महत्व:
श्री गुरु मच्छिन्द्रनाथ जी महाराज जी कौन थे?
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