संकट मोचन हनुमानाष्टक...
जयसियाराम जय जय सियाराम , जयसियाराम जय जय सियाराम ।
जयसियाराम जयसियाराम, जयसियाराम जय जय सियाराम ॥
हनुमानाष्टक के द्वारा पवन पुत्र हनुमान जी की आराधना की जाती है। हनुमानाष्टक के पाठ करने से आने वाला बड़े से बड़ा संकट टल जाता है। इसलिए हनुमानजी को संकटमोचन के नाम से भी जाना जाता है। मंगलवार, शनिवार या फिर हनुमान जयंती के दिन जो कोई व्यक्ति हनुमानाष्टक का पाठ करता है उसे अंजनि के लाल हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हनुमान अपने भक्तों के सारे कष्टों को हर लेते हैं।
जो व्यक्ति हनुमान जी का स्मरण सच्चे हृदय से करता है उसके जीवन में आने वाली सारी विपदाएँ दूर हो जाती हैं। हनुमानाष्टक का पाठ कभी भी संकट के समय में पाठ किया जा सकता है।
॥ हनुमानाष्टक ॥
बाल समय रवि भक्ष लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥ को नहीं जानत है ...
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौं हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥ को नहीं जानत है ...
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥ को नहीं जानत है ...
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥ को नहीं जानत है ...
रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥ को नहीं जानत है ...
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देवहीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥ को नहीं जानत है ...
काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो ॥ ८ ॥ को नहीं जानत है ...
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥
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