श्री गोरक्ष कवच (संस्कृत पाठ सहित)...
गोरक्ष कवच नाथ योग परंपरा के अद्भुत रचनाओं में से एक है। यह एक रक्षात्मक स्तोत्र (कवच) है जो शरीर, मन और आत्मा की रक्षा करता है। यह विशेष रूप से उन साधकों द्वारा पढ़ा जाता है जो योग, तंत्र, साधना, और गुरु-भक्ति मार्ग पर चलते हैं।
(गुरु गोरखनाथ जी द्वारा प्रदत्त रक्षात्मक स्तोत्र)
॥ श्रीगोरक्ष कवचम् ॥
ॐ अस्य श्रीगोरक्षकवचमन्त्रस्य
शिवऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीगोरक्षनाथो देवता,
योगिनी बीजम्, हंसः शक्तिः,
गुरुरिति कीलकम्।
श्रीगोरक्षनाथप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥
स्तोत्र प्रारंभ:
ॐ गोरक्षो मे शिरः पातु, ललाटं गुरुनायकः।
नेत्रे मम रथस्थश्च, कर्णौ योगीश्वरोऽवतु॥ 1 ॥
नासिकां नाथनाथश्च, वदनं विश्वरक्षकः।
जिव्हां मे सिद्धनाथश्च, दन्तान् मे योगराट् सदा॥ 2 ॥
कण्ठं मे कण्ठमालश्च, स्कन्धौ सिद्धेश्वरोऽवतु।
भुजौ बलार्करूपश्च, हस्तौ मे पातु बल्यभूः॥ 3 ॥
हृदयं मे सदा रक्षेद् ध्यानयोगपरायणः।
नाभिं पातु महामायावी, पृष्ठं योगविभूतिधृक्॥ 4 ॥
कटिं रक्षतु योगात्मा, गुढं मे सिद्धसंश्रयः।
जंघे मे पातु चरमः, पादौ सिद्धिप्रदायकः॥ 5 ॥
सर्वाङ्गं योगविज्ञानी, रक्षेत् मे योगविभवः।
इत्येतत्कवचं दिव्यं योगिनां च महाप्रियम्॥ 6 ॥
फलश्रुति (पाठ का फल):
विशेष उपयोग:
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