अथ विन्धेश्वरी स्तोत्र...
!! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !!श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र के दुवारा देवी से प्रार्थना की जाती है कि हम देवी का आशीर्वाद कैसे प्राप्त करते हैं। विंध्येश्वरी दो अत्यंत क्रूर राक्षसों की संहारक है। अर्थात् निशुंभुआ और शुंभ। हमारी सुरक्षा के लिए उसके हाथों में हथियार हैं। वह हमारे जीवन से दुख, दरिद्रता और पीड़ा को भी दूर करती है और हमारे जीवन को सुखी, समृद्ध और शांतिपूर्ण बनाती है। विंधेेश्वरी हमारी रक्षा करने और हमारी मदद करने के लिए हमारे घर आती हैं। इसलिए हम उनसे प्रार्थना करते हैं और उनका आशीर्वाद पाते हैं।
|| श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् ||
निशुम्भ शुम्भ गर्जनीं, प्रचण्ड मुण्डखण्डिनी।
बनेरणे प्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनी॥
त्रिशुल-मुण्ड-धारिणीं धरा-विघात-हारिणी।
गृहे-गृहे निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनी॥
दरिद्रदुःख-हारिणीं, सदा विभुतिकारिणी।
वियोग-शोक-हारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
लसत्सुलोल-लोचनं लतासनं वरप्रदम।
कपाल-शुल-धारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी।
वरा-वराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनी॥
कपीन्द्र जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप-धारिणी।
जले स्थले निवासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
विशिष्ट-शिष्ट-कारिणीं, विशाल रूप-धारिणी।
महोदरे विलासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
पुरन्दरादि-सेवितां पुरादिवंशखण्डिताम।
विशुद्ध-बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
इस स्तोत्र का पूरी श्रद्धा से पाठ करने पर अपार धन संपदा, यश, सुख, समृद्धि, वैभव, पराक्रम, सौभाग्य, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। सफलता के द्वार खुलने लगते हैं।
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