श्री लक्ष्मी स्तोत्र...
महालक्ष्म्यष्टकम्
नमस्ते स्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते ।
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।1।।
अनुवाद – इन्द्र बोले – श्री पीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये ! तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मि ! तुम्हें प्रणाम है।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्व पापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।2।।
अनुवाद – गरुड़ पर आरुढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें प्रणाम है।
सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्वदुष्ट भयंकरि ।
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।3।।
अनुवाद – सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली हे देवि महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है।
सिद्धिबुद्धि प्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि ।
मन्त्र पूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।4।।
अनुवाद – सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मि! तुम्हें सदा प्रणाम है।
आद्यन्त रहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि ।
यो गजे योग सम्भूते महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।5।।
अनुवाद – हे देवि! हे आदि-अन्तरहित आदिशक्ते! हे महेश्वरि! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मि! तुम्हें नमस्कार है।
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापाप हरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।6।।
अनुवाद – हे देवि! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बडे़-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्ष्मि! तुम्हें नमस्कार है।
पद्मासन स्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमो स्तुते ।।7।।
अनुवाद – हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरुपिणी देवि! हे परमेश्वरि! हे जगदम्ब! हे महालक्ष्मि! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
श्वेताम्बर धरे देवि नानालंकार भूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।8।।
अनुवाद – हे देवि! तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मि! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: ।
सर्व सिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ।।9।।
अनुवाद – जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभव को प्राप्त कर सकता है।
एककाले पठेन्नित्यं महापाप विनाशनम् ।
द्विकाल य: पठेन्नित्यं धनधान्य समन्वित: ।।10।।
अनुवाद – जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो प्रतिदिन दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ।।11।।
अनुवाद – जो प्रतिदिन तीनों कालों में पाठ करता है, उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।
।।इति इन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम्।।
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