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Maa Dhumavati\Stuti\Sri Saubhagya Dhumavati Kalpokta Dhumavati Kavacham\Dhumavati Ashtottara Shatanam Stotra

श्री सौभाग्यधूमावतीकल्पोक्त धूमावतीकवचम्

माँ धूमावती...

माँ धूमावती १० महाविद्याओं में से एक सातवीं उग्र शक्ति हैं, धूमावती माता पार्वती का एक रूप है। यदि सब पूजा पाठ तंत्र मंत्र यन्त्र विफल हो जाएं या कोई काम ना आये तो धूमावती की शरण लें ये अंतिम उपाय है अंत मे ही करें, देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है।...

|| माँ धूमावती ||

स्तुति:

विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा,
विवरणकुण्डला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,
काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,
सूर्यहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,
प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,
क्षुतपिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहप्रिया.

॥ सौभाग्यदात्री धूमावती कवचम् ॥

धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी ।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ॥१॥
कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके ।
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ॥२॥
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः ।
सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देविपुरं ययौ ॥३॥

॥ श्री सौभाग्यधूमावतीकल्पोक्त धूमावतीकवचम् ॥

।।श्री धूमावती अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र।।

ईश्वर उवाचधूमावती धूम्रवर्णा धूम्रपानपरायणा ।
धूम्राक्षमथिनी धन्या धन्यस्थाननिवासिनी ॥ १॥
अघोराचारसन्तुष्टा अघोराचारमण्डिता ।
अघोरमन्त्रसम्प्रीता अघोरमन्त्रपूजिता ॥ २॥
अट्टाट्टहासनिरता मलिनाम्बरधारिणी ।
वृद्धा विरूपा विधवा विद्या च विरलद्विजा ॥ ३॥
प्रवृद्धघोणा कुमुखी कुटिला कुटिलेक्षणा ।
कराली च करालास्या कङ्काली शूर्पधारिणी ॥ ४॥
काकध्वजरथारूढा केवला कठिना कुहूः ।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्या ललज्जिह्वा दिगम्बरी ॥ ५॥
दीर्घोदरी दीर्घरवा दीर्घाङ्गी दीर्घमस्तका ।
विमुक्तकुन्तला कीर्त्या कैलासस्थानवासिनी ॥ ६॥
क्रूरा कालस्वरूपा च कालचक्रप्रवर्तिनी ।
विवर्णा चञ्चला दुष्टा दुष्टविध्वंसकारिणी ॥ ७॥
चण्डी चण्डस्वरूपा च चामुण्डा चण्डनिस्वना ।
चण्डवेगा चण्डगतिश्चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ ८॥
चाण्डालिनी चित्ररेखा चित्राङ्गी चित्ररूपिणी ।
कृष्णा कपर्दिनी कुल्ला कृष्णारूपा क्रियावती ॥ ९॥
कुम्भस्तनी महोन्मत्ता मदिरापानविह्वला ।
चतुर्भुजा ललज्जिह्वा शत्रुसंहारकारिणी ॥ १०॥
शवारूढा शवगता श्मशानस्थानवासिनी ।
दुराराध्या दुराचारा दुर्जनप्रीतिदायिनी ॥ ११॥
निर्मांसा च निराकारा धूतहस्ता वरान्विता ।
कलहा च कलिप्रीता कलिकल्मषनाशिनी ॥ १२॥
महाकालस्वरूपा च महाकालप्रपूजिता ।
महादेवप्रिया मेधा महासङ्कटनाशिनी ॥ १३॥
भक्तप्रिया भक्तगतिर्भक्तशत्रुविनाशिनी ।
भैरवी भुवना भीमा भारती भुवनात्मिका ॥ १४॥
भेरुण्डा भीमनयना त्रिनेत्रा बहुरूपिणी ।
त्रिलोकेशी त्रिकालज्ञा त्रिस्वरूपा त्रयीतनुः ॥ १५॥
त्रिमूर्तिश्च तथा तन्वी त्रिशक्तिश्च त्रिशूलिनी ।
इति धूमामहत्स्तोत्रं नाम्नामष्टोत्तरात्मकम् ॥ १६॥
मया ते कथितं देवि शत्रुसङ्घविनाशनम् ।
कारागारे रिपुग्रस्ते महोत्पाते महाभये ॥ १७॥
इदं स्तोत्रं पठेन्मर्त्यो मुच्यते सर्वसङ्कटैः ।
गुह्याद्गुह्यतरं गुह्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ॥ १८॥
चतुष्पदार्थदं नॄणां सर्वसम्पत्प्रदायकम् ॥ १९॥
इति श्रीधूमावत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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