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Indrakshi Stotram/Indrakshi Stotram in Sanskrit/hindi

इंद्राक्षी स्तोत्रम्

इंद्राक्षी स्तोत्रम्...

इंद्राक्षी स्तोत्रम् देवी इंद्राक्षी को समर्पित सर्वश्रेष्ठ संस्कृत वैदिक भजनों में से एक है। देवी इंद्राक्षी को तीनों लोकों की देवी के रूप में जाना जाता है। जो सबसे शक्तिशाली देवी-देवताओं में से एक हैं। कृपया इंद्राक्षी स्तोत्रम् का प्रतिदिन पाठ करे। यह आपकी वित्तीय स्थिति को प्रभावित करता है और इसे वित्तपोषित करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह आपके जीवन की अन्य बड़ी बाधाओं को दूर करने में भी आपकी मदद करेगा। साथ ही, यह पूजा आपके लिए शांति, ऊर्जा, सद्भाव, खुशी और सकारात्मक विचार ला सकती है। इन्द्रकी कृपा की प्राप्ति के लिए, प्रतिदिन पाठ करे।

卐 इंद्राक्षी स्तोत्रम् 卐

॥ नारद उवाच ॥

इंद्राक्षीस्तोत्रमाख्याहि नारायण गुणार्णव ।
पार्वत्यै शिवसंप्रोक्तं परं कौतूहलं हि मे ॥

॥ नारायण उवाच ॥

इंद्राक्षी स्तोत्र मंत्रस्य माहात्म्यं केन वोच्यते ।
इंद्रेणादौ कृतं स्तोत्रं सर्वापद्विनिवारणम् ॥

॥ तदेवाहं ब्रवीम्यद्य पृच्छतस्तव नारद ॥

अस्य श्री इंद्राक्षीस्तोत्रमहामंत्रस्य, शचीपुरंदर ऋषिः, अनुष्टुप्छंदः, इंद्राक्षी दुर्गा देवता, लक्ष्मीर्बीजं, भुवनेश्वरी शक्तिः, भवानी कीलकं, मम इंद्राक्षी प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

करन्यासः

इंद्राक्ष्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
महालक्ष्म्यै तर्जनीभ्यां नमः ।
महेश्वर्यै मध्यमाभ्यां नमः ।
अंबुजाक्ष्यै अनामिकाभ्यां नमः ।
कात्यायन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
कौमार्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

अंगन्यासः

इंद्राक्ष्यै हृदयाय नमः ।
महालक्ष्म्यै शिरसे स्वाहा ।
महेश्वर्यै शिखायै वषट् ।
अंबुजाक्ष्यै कवचाय हुम् ।
कात्यायन्यै नेत्रत्रयाय वौषट् ।
कौमार्यै अस्त्राय फट् ।
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बंधः ॥

ध्यानम्

नेत्राणां दशभिश्शतैः परिवृतामत्युग्रचर्मांबराम् ।
हेमाभां महतीं विलंबितशिखामामुक्तकेशान्विताम् ॥
घंटामंडितपादपद्मयुगलां नागेंद्रकुंभस्तनीम् ।
इंद्राक्षीं परिचिंतयामि मनसा कल्पोक्तसिद्धिप्रदाम् ॥ १ ॥
इंद्राक्षीं द्विभुजां देवीं पीतवस्त्रद्वयान्विताम् ।
वामहस्ते वज्रधरां दक्षिणेन वरप्रदाम् ॥
इंद्राक्षीं सहयुवतीं नानालंकारभूषिताम् ।
प्रसन्नवदनांभोजामप्सरोगणसेविताम् ॥ २ ॥
द्विभुजां सौम्यवदानां पाशांकुशधरां पराम् ।
त्रैलोक्यमोहिनीं देवीं इंद्राक्षी नाम कीर्तिताम् ॥ ३ ॥
पीतांबरां वज्रधरैकहस्तां नानाविधालंकरणां प्रसन्नाम् ।
त्वामप्सरस्सेवितपादपद्मां इंद्राक्षीं वंदे शिवधर्मपत्नीम् ॥ ४ ॥

पंचपूजा

लं पृथिव्यात्मिकायै गंधं समर्पयामि ।
हं आकाशात्मिकायै पुष्पैः पूजयामि ।
यं वाय्वात्मिकायै धूपमाघ्रापयामि ।
रं अग्न्यात्मिकायै दीपं दर्शयामि ।
वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं निवेदयामि ।
सं सर्वात्मिकायै सर्वोपचारपूजां समर्पयामि ॥

दिग्देवता रक्ष

॥ इंद्र उवाच ॥

इंद्राक्षी पूर्वतः पातु पात्वाग्नेय्यां तथेश्वरी ।
कौमारी दक्षिणे पातु नैरृत्यां पातु पार्वती ॥ १ ॥
वाराही पश्चिमे पातु वायव्ये नारसिंह्यपि ।
उदीच्यां कालरात्री मां ऐशान्यां सर्वशक्तयः ॥ २ ॥
भैरव्योर्ध्वं सदा पातु पात्वधो वैष्णवी तथा ।
एवं दशदिशो रक्षेत्सर्वदा भुवनेश्वरी ॥ ३ ॥
ॐ ह्रीं श्रीं इंद्राक्ष्यै नमः

स्तोत्रं

इंद्राक्षी नाम सा देवी देवतैस्समुदाहृता ।
गौरी शाकंभरी देवी दुर्गानाम्नीति विश्रुता ॥ १ ॥
नित्यानंदी निराहारी निष्कलायै नमोऽस्तु ते ।
कात्यायनी महादेवी चंद्रघंटा महातपाः ॥ २ ॥
सावित्री सा च गायत्री ब्रह्माणी ब्रह्मवादिनी ।
नारायणी भद्रकाली रुद्राणी कृष्णपिंगला ॥ ३ ॥
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्री तपस्विनी ।
मेघस्वना सहस्राक्षी विकटांगी (विकारांगी) जडोदरी ॥ ४ ॥
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।
अजिता भद्रदाऽनंता रोगहंत्री शिवप्रिया ॥ ५ ॥
शिवदूती कराली च प्रत्यक्षपरमेश्वरी ।
इंद्राणी इंद्ररूपा च इंद्रशक्तिःपरायणी ॥ ६ ॥
सदा सम्मोहिनी देवी सुंदरी भुवनेश्वरी ।
एकाक्षरी परा ब्राह्मी स्थूलसूक्ष्मप्रवर्धनी ॥ ७ ॥
रक्षाकरी रक्तदंता रक्तमाल्यांबरा परा ।
महिषासुरसंहर्त्री चामुंडा सप्तमातृका ॥ ८ ॥
वाराही नारसिंही च भीमा भैरववादिनी ।
श्रुतिस्स्मृतिर्धृतिर्मेधा विद्यालक्ष्मीस्सरस्वती ॥ ९ ॥
अनंता विजयाऽपर्णा मानसोक्तापराजिता ।
भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यंबिका शिवा ॥ १० ॥
शिवा भवानी रुद्राणी शंकरार्धशरीरिणी ।
ऐरावतगजारूढा वज्रहस्ता वरप्रदा ॥ ११ ॥
धूर्जटी विकटी घोरी ह्यष्टांगी नरभोजिनी ।
भ्रामरी कांचि कामाक्षी क्वणन्माणिक्यनूपुरा ॥ १२ ॥
ह्रींकारी रौद्रभेताली ह्रुंकार्यमृतपाणिनी ।
त्रिपाद्भस्मप्रहरणा त्रिशिरा रक्तलोचना ॥ १३ ॥
नित्या सकलकल्याणी सर्वैश्वर्यप्रदायिनी ।
दाक्षायणी पद्महस्ता भारती सर्वमंगला ॥ १४ ॥
कल्याणी जननी दुर्गा सर्वदुःखविनाशिनी ।
इंद्राक्षी सर्वभूतेशी सर्वरूपा मनोन्मनी ॥ १५ ॥
महिषमस्तकनृत्यविनोदनस्फुटरणन्मणिनूपुरपादुका ।
जननरक्षणमोक्षविधायिनीजयतु शुंभनिशुंभनिषूदिनी ॥ १६ ॥
शिवा च शिवरूपा च शिवशक्तिपरायणी ।
मृत्युंजयी महामायी सर्वरोगनिवारिणी ॥ १७ ॥
ऐंद्रीदेवी सदाकालं शांतिमाशुकरोतु मे ।
ईश्वरार्धांगनिलया इंदुबिंबनिभानना ॥ १८ ॥
सर्वोरोगप्रशमनी सर्वमृत्युनिवारिणी ।
अपवर्गप्रदा रम्या आयुरारोग्यदायिनी ॥ १९ ॥
इंद्रादिदेवसंस्तुत्या इहामुत्रफलप्रदा ।
इच्छाशक्तिस्वरूपा च इभवक्त्राद्विजन्मभूः ॥ २० ॥
भस्मायुधाय विद्महे रक्तनेत्राय धीमहि तन्नो ज्वरहरः प्रचोदयात् ॥ २१ ॥

मंत्रः

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं क्लूं इंद्राक्ष्यै नमः॥ २२ ॥
ॐ नमो भगवती इंद्राक्षी सर्वजनसम्मोहिनी कालरात्री नारसिंही सर्वशत्रुसंहारिणी अनले अभये अजिते अपराजिते महासिंहवाहिनी महिषासुरमर्दिनी हन हन मर्दय मर्दय मारय मारय शोषय शोषय दाहय दाहय महाग्रहान् संहर संहर यक्षग्रह राक्षसग्रह स्कंदग्रह विनायकग्रह बालग्रह कुमारग्रह चोरग्रह भूतग्रह प्रेतग्रह पिशाचग्रह कूष्मांडग्रहादीन् मर्दय मर्दय निग्रह निग्रह धूमभूतान्संत्रावय संत्रावय भूतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर उष्णज्वर पित्तज्वर वातज्वर श्लेष्मज्वर कफज्वर आलापज्वर सन्निपातज्वर माहेंद्रज्वर कृत्रिमज्वर कृत्यादिज्वर एकाहिकज्वर द्वयाहिकज्वर त्रयाहिकज्वर चातुर्थिकज्वर पंचाहिकज्वर पक्षज्वर मासज्वर षण्मासज्वर संवत्सरज्वर ज्वरालापज्वर सर्वज्वर सर्वांगज्वरान् नाशय नाशय हर हर हन हन दह दह पच पच ताडय ताडय आकर्षय आकर्षय विद्वेषय विद्वेषय स्तंभय स्तंभय मोहय मोहय उच्चाटय उच्चाटय हुं फट् स्वाहा॥ २३ ॥
ॐ ह्रीं ॐ नमो भगवती त्रैलोक्यलक्ष्मी सर्वजनवशंकरी सर्वदुष्टग्रहस्तंभिनी कंकाली कामरूपिणी कालरूपिणी घोररूपिणी परमंत्रपरयंत्र प्रभेदिनी प्रतिभटविध्वंसिनी परबलतुरगविमर्दिनी शत्रुकरच्छेदिनी शत्रुमांसभक्षिणी सकलदुष्टज्वरनिवारिणी भूत प्रेत पिशाच ब्रह्मराक्षस यक्ष यमदूत शाकिनी डाकिनी कामिनी स्तंभिनी मोहिनी वशंकरी कुक्षिरोग शिरोरोग नेत्ररोग क्षयापस्मार कुष्ठादि महारोगनिवारिणी मम सर्वरोगं नाशय नाशय ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हुं फट् स्वाहा॥ २४ ॥
ॐ नमो भगवती माहेश्वरी महाचिंतामणी दुर्गे सकलसिद्धेश्वरी सकलजनमनोहारिणी कालकालरात्री महाघोररूपे प्रतिहतविश्वरूपिणी मधुसूदनी महाविष्णुस्वरूपिणी शिरश्शूल कटिशूल अंगशूल पार्श्वशूल नेत्रशूल कर्णशूल पक्षशूल पांडुरोग कामारादीन् संहर संहर नाशय नाशय वैष्णवी ब्रह्मास्त्रेण विष्णुचक्रेण रुद्रशूलेन यमदंडेन वरुणपाशेन वासववज्रेण सर्वानरीं भंजय भंजय राजयक्ष्म क्षयरोग तापज्वरनिवारिणी मम सर्वज्वरं नाशय नाशय य र ल व श ष स ह सर्वग्रहान् तापय तापय संहर संहर छेदय छेदय उच्चाटय उच्चाटय ह्रां ह्रीं ह्रूं फट् स्वाहा॥ २५ ॥

उत्तरन्यासः

करन्यासः

इंद्राक्ष्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
महालक्ष्म्यै तर्जनीभ्यां नमः ।
महेश्वर्यै मध्यमाभ्यां नमः ।
अंबुजाक्ष्यै अनामिकाभ्यां नमः ।
कात्यायन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
कौमार्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

अंगन्यासः

इंद्राक्ष्यै हृदयाय नमः ।
महालक्ष्म्यै शिरसे स्वाहा ।
महेश्वर्यै शिखायै वषट् ।
अंबुजाक्ष्यै कवचाय हुम् ।
कात्यायन्यै नेत्रत्रयाय वौषट् ।
कौमार्यै अस्त्राय फट् ।
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्विमोकः ॥

समर्पणं

गुह्यादि गुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवी त्वत्प्रसादान्मयि स्थिरान् ॥ २६ ॥

फलश्रुतिः

॥ नारायण उवाच ॥

एतैर्नामशतैर्दिव्यैः स्तुता शक्रेण धीमता ।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं अपमृत्युभयापहम् ॥ २७ ॥
क्षयापस्मारकुष्ठादि तापज्वरनिवारणम् ।
चोरव्याघ्रभयं तत्र शीतज्वरनिवारणम् ॥ २८ ॥
माहेश्वरमहामारी सर्वज्वरनिवारणम् ।
शीतपैत्तकवातादि सर्वरोगनिवारणम् ॥ २९ ॥
सन्निज्वरनिवारणं सर्वज्वरनिवारणम् ।
सर्वरोगनिवारणं सर्वमंगलवर्धनम् ॥ ३० ॥
शतमावर्तयेद्यस्तु मुच्यते व्याधिबंधनात् ।
आवर्तयन्सहस्रात्तु लभते वांछितं फलम् ॥ ३१ ॥
एतत् स्तोत्रं महापुण्यं जपेदायुष्यवर्धनम् ।
विनाशाय च रोगाणामपमृत्युहराय च ॥ ३२ ॥
द्विजैर्नित्यमिदं जप्यं भाग्यारोग्याभीप्सुभिः ।
नाभिमात्रजलेस्थित्वा सहस्रपरिसंख्यया ॥ ३३ ॥
जपेत्स्तोत्रमिमं मंत्रं वाचां सिद्धिर्भवेत्ततः ।
अनेनविधिना भक्त्या मंत्रसिद्धिश्च जायते ॥ ३४ ॥
संतुष्टा च भवेद्देवी प्रत्यक्षा संप्रजायते ।
सायं शतं पठेन्नित्यं षण्मासात्सिद्धिरुच्यते ॥ ३५ ॥
चोरव्याधिभयस्थाने मनसाह्यनुचिंतयन् ।
संवत्सरमुपाश्रित्य सर्वकामार्थसिद्धये ॥ ३६ ॥
राजानं वश्यमाप्नोति षण्मासान्नात्र संशयः ।
अष्टदोर्भिस्समायुक्ते नानायुद्धविशारदे ॥ ३७ ॥
भूतप्रेतपिशाचेभ्यो रोगारातिमुखैरपि ।
नागेभ्यः विषयंत्रेभ्यः आभिचारैर्महेश्वरी ॥ ३८ ॥
रक्ष मां रक्ष मां नित्यं प्रत्यहं पूजिता मया ।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके देवी नारायणी नमोऽस्तु ते ॥ ३९ ॥
वरं प्रदाद्महेंद्राय देवराज्यं च शाश्वतम् ।
इंद्रस्तोत्रमिदं पुण्यं महदैश्वर्यकारणम् ॥ ४० ॥

॥ इति इंद्राक्षी स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥

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भारत के प्रमुख मंदिरो की सूची भारत के प्रमुख मंदिरो की सूची... भारतीय सभ्यता दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है एवं सनातन काल से यहां मंदिरो की विशेष मान्यताये है। भारत के हर राज्य में कई प्रसिद्ध मंदिर है। ऐसे मंदिर भी है जिनमे की वर्ष भर आने वाले श्रद्धालुओ का तांता ही लगा रहता है, जो आमतौर पर अपने विस्तृत वास्त़ुकला और समृद्ध इतिहास के लिए जाने जाते हैं। भारत के कुछ प्रमुख मंदिरो के नाम यहां हमने सूचीबद्ध किये है। भारत के प्रमुख मंदिर सूची क्र. संख्या प्रसिद्द मंदिर स्थान 1 बद्रीनाथ मंदिर बद्रीनाथ, उत्तराखंड 2 केदारनाथ मंदिर केदारनाथ, उत्तराखंड 3 यमुनोत्री मंदिर उत्तरकाशी, उत्तराखंड 4 गंगोत्री मंदिर गंगोत्री, उत्तराखंड 5 हिडिम्बा देवी मंदिर मनाली, हिमाचल प्रदेश 6 अमरनाथ मंदिर पहलगाम, जम्मू कश्मीर 7 माता वैष्णो देवी मंदिर कटरा, जम्मू कश्मीर 8 मार्तण्ड सूर्य मंदिर अनंतनाग, कश्मीर 9 काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी, उत्तर प्रदेश 10 प्रेम मंदिर मथुरा, उत्तरप्रदेश