Skip to main content

Indrakshi Stotram/Indrakshi Stotram in Sanskrit/hindi

इंद्राक्षी स्तोत्रम्

इंद्राक्षी स्तोत्रम्...

इंद्राक्षी स्तोत्रम् देवी इंद्राक्षी को समर्पित सर्वश्रेष्ठ संस्कृत वैदिक भजनों में से एक है। देवी इंद्राक्षी को तीनों लोकों की देवी के रूप में जाना जाता है। जो सबसे शक्तिशाली देवी-देवताओं में से एक हैं। कृपया इंद्राक्षी स्तोत्रम् का प्रतिदिन पाठ करे। यह आपकी वित्तीय स्थिति को प्रभावित करता है और इसे वित्तपोषित करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह आपके जीवन की अन्य बड़ी बाधाओं को दूर करने में भी आपकी मदद करेगा। साथ ही, यह पूजा आपके लिए शांति, ऊर्जा, सद्भाव, खुशी और सकारात्मक विचार ला सकती है। इन्द्रकी कृपा की प्राप्ति के लिए, प्रतिदिन पाठ करे।

卐 इंद्राक्षी स्तोत्रम् 卐

॥ नारद उवाच ॥

इंद्राक्षीस्तोत्रमाख्याहि नारायण गुणार्णव ।
पार्वत्यै शिवसंप्रोक्तं परं कौतूहलं हि मे ॥

॥ नारायण उवाच ॥

इंद्राक्षी स्तोत्र मंत्रस्य माहात्म्यं केन वोच्यते ।
इंद्रेणादौ कृतं स्तोत्रं सर्वापद्विनिवारणम् ॥

॥ तदेवाहं ब्रवीम्यद्य पृच्छतस्तव नारद ॥

अस्य श्री इंद्राक्षीस्तोत्रमहामंत्रस्य, शचीपुरंदर ऋषिः, अनुष्टुप्छंदः, इंद्राक्षी दुर्गा देवता, लक्ष्मीर्बीजं, भुवनेश्वरी शक्तिः, भवानी कीलकं, मम इंद्राक्षी प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

करन्यासः

इंद्राक्ष्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
महालक्ष्म्यै तर्जनीभ्यां नमः ।
महेश्वर्यै मध्यमाभ्यां नमः ।
अंबुजाक्ष्यै अनामिकाभ्यां नमः ।
कात्यायन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
कौमार्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

अंगन्यासः

इंद्राक्ष्यै हृदयाय नमः ।
महालक्ष्म्यै शिरसे स्वाहा ।
महेश्वर्यै शिखायै वषट् ।
अंबुजाक्ष्यै कवचाय हुम् ।
कात्यायन्यै नेत्रत्रयाय वौषट् ।
कौमार्यै अस्त्राय फट् ।
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बंधः ॥

ध्यानम्

नेत्राणां दशभिश्शतैः परिवृतामत्युग्रचर्मांबराम् ।
हेमाभां महतीं विलंबितशिखामामुक्तकेशान्विताम् ॥
घंटामंडितपादपद्मयुगलां नागेंद्रकुंभस्तनीम् ।
इंद्राक्षीं परिचिंतयामि मनसा कल्पोक्तसिद्धिप्रदाम् ॥ १ ॥
इंद्राक्षीं द्विभुजां देवीं पीतवस्त्रद्वयान्विताम् ।
वामहस्ते वज्रधरां दक्षिणेन वरप्रदाम् ॥
इंद्राक्षीं सहयुवतीं नानालंकारभूषिताम् ।
प्रसन्नवदनांभोजामप्सरोगणसेविताम् ॥ २ ॥
द्विभुजां सौम्यवदानां पाशांकुशधरां पराम् ।
त्रैलोक्यमोहिनीं देवीं इंद्राक्षी नाम कीर्तिताम् ॥ ३ ॥
पीतांबरां वज्रधरैकहस्तां नानाविधालंकरणां प्रसन्नाम् ।
त्वामप्सरस्सेवितपादपद्मां इंद्राक्षीं वंदे शिवधर्मपत्नीम् ॥ ४ ॥

पंचपूजा

लं पृथिव्यात्मिकायै गंधं समर्पयामि ।
हं आकाशात्मिकायै पुष्पैः पूजयामि ।
यं वाय्वात्मिकायै धूपमाघ्रापयामि ।
रं अग्न्यात्मिकायै दीपं दर्शयामि ।
वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं निवेदयामि ।
सं सर्वात्मिकायै सर्वोपचारपूजां समर्पयामि ॥

दिग्देवता रक्ष

॥ इंद्र उवाच ॥

इंद्राक्षी पूर्वतः पातु पात्वाग्नेय्यां तथेश्वरी ।
कौमारी दक्षिणे पातु नैरृत्यां पातु पार्वती ॥ १ ॥
वाराही पश्चिमे पातु वायव्ये नारसिंह्यपि ।
उदीच्यां कालरात्री मां ऐशान्यां सर्वशक्तयः ॥ २ ॥
भैरव्योर्ध्वं सदा पातु पात्वधो वैष्णवी तथा ।
एवं दशदिशो रक्षेत्सर्वदा भुवनेश्वरी ॥ ३ ॥
ॐ ह्रीं श्रीं इंद्राक्ष्यै नमः

स्तोत्रं

इंद्राक्षी नाम सा देवी देवतैस्समुदाहृता ।
गौरी शाकंभरी देवी दुर्गानाम्नीति विश्रुता ॥ १ ॥
नित्यानंदी निराहारी निष्कलायै नमोऽस्तु ते ।
कात्यायनी महादेवी चंद्रघंटा महातपाः ॥ २ ॥
सावित्री सा च गायत्री ब्रह्माणी ब्रह्मवादिनी ।
नारायणी भद्रकाली रुद्राणी कृष्णपिंगला ॥ ३ ॥
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्री तपस्विनी ।
मेघस्वना सहस्राक्षी विकटांगी (विकारांगी) जडोदरी ॥ ४ ॥
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।
अजिता भद्रदाऽनंता रोगहंत्री शिवप्रिया ॥ ५ ॥
शिवदूती कराली च प्रत्यक्षपरमेश्वरी ।
इंद्राणी इंद्ररूपा च इंद्रशक्तिःपरायणी ॥ ६ ॥
सदा सम्मोहिनी देवी सुंदरी भुवनेश्वरी ।
एकाक्षरी परा ब्राह्मी स्थूलसूक्ष्मप्रवर्धनी ॥ ७ ॥
रक्षाकरी रक्तदंता रक्तमाल्यांबरा परा ।
महिषासुरसंहर्त्री चामुंडा सप्तमातृका ॥ ८ ॥
वाराही नारसिंही च भीमा भैरववादिनी ।
श्रुतिस्स्मृतिर्धृतिर्मेधा विद्यालक्ष्मीस्सरस्वती ॥ ९ ॥
अनंता विजयाऽपर्णा मानसोक्तापराजिता ।
भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यंबिका शिवा ॥ १० ॥
शिवा भवानी रुद्राणी शंकरार्धशरीरिणी ।
ऐरावतगजारूढा वज्रहस्ता वरप्रदा ॥ ११ ॥
धूर्जटी विकटी घोरी ह्यष्टांगी नरभोजिनी ।
भ्रामरी कांचि कामाक्षी क्वणन्माणिक्यनूपुरा ॥ १२ ॥
ह्रींकारी रौद्रभेताली ह्रुंकार्यमृतपाणिनी ।
त्रिपाद्भस्मप्रहरणा त्रिशिरा रक्तलोचना ॥ १३ ॥
नित्या सकलकल्याणी सर्वैश्वर्यप्रदायिनी ।
दाक्षायणी पद्महस्ता भारती सर्वमंगला ॥ १४ ॥
कल्याणी जननी दुर्गा सर्वदुःखविनाशिनी ।
इंद्राक्षी सर्वभूतेशी सर्वरूपा मनोन्मनी ॥ १५ ॥
महिषमस्तकनृत्यविनोदनस्फुटरणन्मणिनूपुरपादुका ।
जननरक्षणमोक्षविधायिनीजयतु शुंभनिशुंभनिषूदिनी ॥ १६ ॥
शिवा च शिवरूपा च शिवशक्तिपरायणी ।
मृत्युंजयी महामायी सर्वरोगनिवारिणी ॥ १७ ॥
ऐंद्रीदेवी सदाकालं शांतिमाशुकरोतु मे ।
ईश्वरार्धांगनिलया इंदुबिंबनिभानना ॥ १८ ॥
सर्वोरोगप्रशमनी सर्वमृत्युनिवारिणी ।
अपवर्गप्रदा रम्या आयुरारोग्यदायिनी ॥ १९ ॥
इंद्रादिदेवसंस्तुत्या इहामुत्रफलप्रदा ।
इच्छाशक्तिस्वरूपा च इभवक्त्राद्विजन्मभूः ॥ २० ॥
भस्मायुधाय विद्महे रक्तनेत्राय धीमहि तन्नो ज्वरहरः प्रचोदयात् ॥ २१ ॥

मंत्रः

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं क्लूं इंद्राक्ष्यै नमः॥ २२ ॥
ॐ नमो भगवती इंद्राक्षी सर्वजनसम्मोहिनी कालरात्री नारसिंही सर्वशत्रुसंहारिणी अनले अभये अजिते अपराजिते महासिंहवाहिनी महिषासुरमर्दिनी हन हन मर्दय मर्दय मारय मारय शोषय शोषय दाहय दाहय महाग्रहान् संहर संहर यक्षग्रह राक्षसग्रह स्कंदग्रह विनायकग्रह बालग्रह कुमारग्रह चोरग्रह भूतग्रह प्रेतग्रह पिशाचग्रह कूष्मांडग्रहादीन् मर्दय मर्दय निग्रह निग्रह धूमभूतान्संत्रावय संत्रावय भूतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर उष्णज्वर पित्तज्वर वातज्वर श्लेष्मज्वर कफज्वर आलापज्वर सन्निपातज्वर माहेंद्रज्वर कृत्रिमज्वर कृत्यादिज्वर एकाहिकज्वर द्वयाहिकज्वर त्रयाहिकज्वर चातुर्थिकज्वर पंचाहिकज्वर पक्षज्वर मासज्वर षण्मासज्वर संवत्सरज्वर ज्वरालापज्वर सर्वज्वर सर्वांगज्वरान् नाशय नाशय हर हर हन हन दह दह पच पच ताडय ताडय आकर्षय आकर्षय विद्वेषय विद्वेषय स्तंभय स्तंभय मोहय मोहय उच्चाटय उच्चाटय हुं फट् स्वाहा॥ २३ ॥
ॐ ह्रीं ॐ नमो भगवती त्रैलोक्यलक्ष्मी सर्वजनवशंकरी सर्वदुष्टग्रहस्तंभिनी कंकाली कामरूपिणी कालरूपिणी घोररूपिणी परमंत्रपरयंत्र प्रभेदिनी प्रतिभटविध्वंसिनी परबलतुरगविमर्दिनी शत्रुकरच्छेदिनी शत्रुमांसभक्षिणी सकलदुष्टज्वरनिवारिणी भूत प्रेत पिशाच ब्रह्मराक्षस यक्ष यमदूत शाकिनी डाकिनी कामिनी स्तंभिनी मोहिनी वशंकरी कुक्षिरोग शिरोरोग नेत्ररोग क्षयापस्मार कुष्ठादि महारोगनिवारिणी मम सर्वरोगं नाशय नाशय ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हुं फट् स्वाहा॥ २४ ॥
ॐ नमो भगवती माहेश्वरी महाचिंतामणी दुर्गे सकलसिद्धेश्वरी सकलजनमनोहारिणी कालकालरात्री महाघोररूपे प्रतिहतविश्वरूपिणी मधुसूदनी महाविष्णुस्वरूपिणी शिरश्शूल कटिशूल अंगशूल पार्श्वशूल नेत्रशूल कर्णशूल पक्षशूल पांडुरोग कामारादीन् संहर संहर नाशय नाशय वैष्णवी ब्रह्मास्त्रेण विष्णुचक्रेण रुद्रशूलेन यमदंडेन वरुणपाशेन वासववज्रेण सर्वानरीं भंजय भंजय राजयक्ष्म क्षयरोग तापज्वरनिवारिणी मम सर्वज्वरं नाशय नाशय य र ल व श ष स ह सर्वग्रहान् तापय तापय संहर संहर छेदय छेदय उच्चाटय उच्चाटय ह्रां ह्रीं ह्रूं फट् स्वाहा॥ २५ ॥

उत्तरन्यासः

करन्यासः

इंद्राक्ष्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
महालक्ष्म्यै तर्जनीभ्यां नमः ।
महेश्वर्यै मध्यमाभ्यां नमः ।
अंबुजाक्ष्यै अनामिकाभ्यां नमः ।
कात्यायन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
कौमार्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

अंगन्यासः

इंद्राक्ष्यै हृदयाय नमः ।
महालक्ष्म्यै शिरसे स्वाहा ।
महेश्वर्यै शिखायै वषट् ।
अंबुजाक्ष्यै कवचाय हुम् ।
कात्यायन्यै नेत्रत्रयाय वौषट् ।
कौमार्यै अस्त्राय फट् ।
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्विमोकः ॥

समर्पणं

गुह्यादि गुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवी त्वत्प्रसादान्मयि स्थिरान् ॥ २६ ॥

फलश्रुतिः

॥ नारायण उवाच ॥

एतैर्नामशतैर्दिव्यैः स्तुता शक्रेण धीमता ।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं अपमृत्युभयापहम् ॥ २७ ॥
क्षयापस्मारकुष्ठादि तापज्वरनिवारणम् ।
चोरव्याघ्रभयं तत्र शीतज्वरनिवारणम् ॥ २८ ॥
माहेश्वरमहामारी सर्वज्वरनिवारणम् ।
शीतपैत्तकवातादि सर्वरोगनिवारणम् ॥ २९ ॥
सन्निज्वरनिवारणं सर्वज्वरनिवारणम् ।
सर्वरोगनिवारणं सर्वमंगलवर्धनम् ॥ ३० ॥
शतमावर्तयेद्यस्तु मुच्यते व्याधिबंधनात् ।
आवर्तयन्सहस्रात्तु लभते वांछितं फलम् ॥ ३१ ॥
एतत् स्तोत्रं महापुण्यं जपेदायुष्यवर्धनम् ।
विनाशाय च रोगाणामपमृत्युहराय च ॥ ३२ ॥
द्विजैर्नित्यमिदं जप्यं भाग्यारोग्याभीप्सुभिः ।
नाभिमात्रजलेस्थित्वा सहस्रपरिसंख्यया ॥ ३३ ॥
जपेत्स्तोत्रमिमं मंत्रं वाचां सिद्धिर्भवेत्ततः ।
अनेनविधिना भक्त्या मंत्रसिद्धिश्च जायते ॥ ३४ ॥
संतुष्टा च भवेद्देवी प्रत्यक्षा संप्रजायते ।
सायं शतं पठेन्नित्यं षण्मासात्सिद्धिरुच्यते ॥ ३५ ॥
चोरव्याधिभयस्थाने मनसाह्यनुचिंतयन् ।
संवत्सरमुपाश्रित्य सर्वकामार्थसिद्धये ॥ ३६ ॥
राजानं वश्यमाप्नोति षण्मासान्नात्र संशयः ।
अष्टदोर्भिस्समायुक्ते नानायुद्धविशारदे ॥ ३७ ॥
भूतप्रेतपिशाचेभ्यो रोगारातिमुखैरपि ।
नागेभ्यः विषयंत्रेभ्यः आभिचारैर्महेश्वरी ॥ ३८ ॥
रक्ष मां रक्ष मां नित्यं प्रत्यहं पूजिता मया ।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके देवी नारायणी नमोऽस्तु ते ॥ ३९ ॥
वरं प्रदाद्महेंद्राय देवराज्यं च शाश्वतम् ।
इंद्रस्तोत्रमिदं पुण्यं महदैश्वर्यकारणम् ॥ ४० ॥

॥ इति इंद्राक्षी स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥

Related Pages:
  1. श्री दक्षिणामूर्ति पंचरत्नम स्त्रोत्रम
  2. श्री कालभैरव अष्टकम्
  3. अंगना पधारो महारानी मोरी शारदा भवानी देवी भजन.
  4. श्री पार्वती चालीसा
  5. श्री शिव प्रातः स्मरणस्तोत्रम्
  6. 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग
  7. राम रक्षा स्तोत्र
  8. संकटमोचन हनुमानाष्टक
  9. श्री मारुती स्तोत्र
  10. श्री बजरंग बाण
  11. चामुण्डा देवी की चालीसा
  12. माँ लक्ष्मी स्तोत्रम्
  13. द्वादश ज्योतिर्लिंग
  14. माँ अन्नपूर्णा स्तोत्रम्
  15. सरस्वती माया दृष्टा

Comments

Popular posts from this blog

Shri Shiv-stuti - नंदी की सवारी नाग अंगीकार धारी।

श्री शिव स्तुति भोले शिव शंकर जी की स्तुति... ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय भगवान शिव स्तुति : भगवान भोलेनाथ भक्तों की प्रार्थना से बहुत जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसी कारण उन्हें 'आशुतोष' भी कहा जाता है। सनातन धर्म में सोमवार का दिन को भगवान शिव को समर्पित है। इसी कारण सोमवार को शिव का महाभिषेक के साथ साथ शिव की उपासना के लिए व्रत भी रखे जाते हैं। अपने परिवार के लिए सुख समृद्धि पाना के लिए सोमवार के दिन शिव स्तुति का जाप करना आपके लिए लाभकारी होगा और स्तुति का सच्चे मन से करने पर भोले भंडारी खुश होकर आशीर्वाद देते है। ॥ शिव स्तुति ॥ ॥ दोहा ॥ श्री गिरिजापति बंदि कर चरण मध्य शिर नाय। कहत गीता राधे तुम मो पर हो सहाय॥ कविता नंदी की सवारी नाग अंगीकार धारी। नित संत सुखकारी नीलकण्ठ त्रिपुरारी हैं॥ गले मुण्डमाला भारी सर सोहै जटाधारी। बाम अंग में बिहारी गिरिजा सुतवारी हैं॥ दानी बड़े भारी शेष शारदा पुकारी। काशीपति मदनारी कर शूल च्रकधारी हैं॥ कला जाकी उजियारी लख देव सो निहारी। यश गावें वेदचारी सो

jhaankee - झांकी उमा महेश की, आठों पहर किया करूँ।

भगवान शिव की आरती | BHAKTI GYAN भगवान शिव की आरती... ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: भगवान शिव की पूजा के समय मन के भावों को शब्दों में व्यक्त करके भी भगवान आशुतोष को प्रसन्न किया जा सकता है। भगवान शिव की आरती से हम भगवान भोलेनाथ के चरणों में अपने स्तुति रूपी श्रद्धासुमन अर्पित कर उनका कृपा प्रसाद पा सकते हैं। ॥ झांकी ॥ झांकी उमा महेश की, आठों पहर किया करूँ। नैनो के पात्र में सुधा, भर भर के मैं पिया करूँ॥ वाराणसी का वास हो, और न कोई पास हो। गिरजापति के नाम का, सुमिरण भजन किया करूँ॥ झांकी उमा महेश की....... जयति जय महेश हे, जयति जय नन्द केश हे। जयति जय उमेश हे, प्रेम से मै जपा करूँ॥ झांकी उमा महेश की....... अम्बा कही श्रमित न हो, सेवा का भार मुझको दो। जी भर के तुम पिया करो, घोट के मैं दिया करूँ॥ झांकी उमा महेश की....... जी मै तुम्हारी है लगन, खीचते है उधर व्यसन। हरदम चलायमान हे मन, इसका उपाय क्या करूँ॥ झांकी उमा महेश की....... भिक्षा में नाथ दीजिए, सेवा में मै रहा करूँ। बेकल हु नाथ रात दिन चैन

Sri Shiva\Rudrashtakam\Shri Rudrashtakam Stotram

श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र... !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! भगवान शिव शंकर जी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। यदि भक्त श्रद्धा पूर्वक एक लोटा जल भी अर्पित कर दे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। 'श्री शिव रुद्राष्टकम' अपने आप में अद्भुत स्तुति है। यदि कोई आपको परेशान कर रहा है तो किसी शिव मंदिर या घर में ही कुशा के आसन पर बैठकर लगातार 7 दिनों तक सुबह शाम 'रुद्राष्टकम' स्तुति का पाठ करने से भगवान शिव बड़े से बड़े शत्रुओं का नाश करते हैं और सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। रामायण के अनुसार, मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने रावण जैसे भयंकर शत्रु पर विजय पाने के लिए रामेशवरम में शिवलिंग की स्थापना कर रूद्राष्टकम स्तुति का श्रद्धापूर्वक पाठ किया था और परिणाम स्वरूप शिव की कृपा से रावण का अंत भी हुआ था। ॥ श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र ॥ नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भज

Dwadash Jyotirlinga - सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। द्वादश ज्योतिर्लिंग... हिन्दू धर्म में यह माना जाता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है। श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम्॥१॥ परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमाशंकरम्। सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥२॥ वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारम् घुश्मेशं च शिवालये॥३॥ एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥४॥ Related Pages: श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् चिन्तामणि षट्पदी स्तोत्र गणपतितालम् श्री कालभैरव अष्टकम् अंगना पधारो महारानी मोरी शारदा भवानी देवी भजन- इंद्राक्षी स्तोत्रम् श्री शिव प्रातः स्मरणस्तोत्रम् 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग राम रक्षा स्तोत्र संकटमोचन हनुमानाष्टक संस्कृत में मारुति स्तो

Lingashtakam\Shiv\lingashtakam stotram-लिङ्गाष्टकम्

श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र श्री शिव लिंगाष्टकम स्तोत्र... !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! लिंगाष्टकम में शिवलिंग की स्तुति बहुत अद्बुध एवं सूंदर ढंग से की गयी है। सुगंध से सुशोभित, शिव लिंग बुद्धि में वृद्धि करता है। चंदन और कुमकुम के लेप से ढका होता है और मालाओं से सुशोभित होता है। इसमें उपासकों के पिछले कर्मों को नष्ट करने की शक्ति है। इसका पाठ करने वाला व्यक्ति हर समय शांति से परिपूर्ण रहता है और साधक के जन्म और पुनर्जन्म के चक्र के कारण होने वाले किसी भी दुख को भी नष्ट कर देता है। ॥ लिंगाष्टकम स्तोत्र ॥ ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् । जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥ देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् । रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥ सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् । सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥ कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् । दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्ग

Mata Chamunda Devi Chalisa - नमस्कार चामुंडा माता, तीनो लोक मई मई विख्याता

चामुण्डा देवी की चालीसा | BHAKTI GYAN चामुण्डा देवी की चालीसा... हिंदू धर्म में मां दुर्गा को शक्ति स्वरूपा माना गया है। भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है, जिनमे से एक चामुण्‍डा देवी मंदिर शक्ति पीठ भी है। चामुण्डा देवी का मंदिर मुख्यता माता काली को समर्पित है, जो कि शक्ति और संहार की देवी है। पुराणों के अनुसार धरती पर जब कोई संकट आया है तब-तब माता ने दानवो का संहार किया है। असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ा। श्री चामुंडा देवी मंदिर को चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है, यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की धर्मशाला तहसील में पालमपुर शहर से 19 K.M दूर स्थित है। जो माता दुर्गा के एक रूप श्री चामुंडा देवी को समर्पित है। || चालीसा || ।। दोहा ।। नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड, दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुस्त को दांड्ड़ । मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत, मेरी भी बढ़ा हरो हो जो कर्म पुनीत ।। ।। चौपाई ।। नमस्कार चामुंडा माता, तीनो लोक मई मई विख्याता । हिमाल्या मई पवितरा धाम है, महाशक्ति तुमको प्रडम है ।।1।।

Temples List\India’s Famous Temple Names in Hindi

भारत के प्रमुख मंदिरो की सूची भारत के प्रमुख मंदिरो की सूची... भारतीय सभ्यता दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है एवं सनातन काल से यहां मंदिरो की विशेष मान्यताये है। भारत के हर राज्य में कई प्रसिद्ध मंदिर है। ऐसे मंदिर भी है जिनमे की वर्ष भर आने वाले श्रद्धालुओ का तांता ही लगा रहता है, जो आमतौर पर अपने विस्तृत वास्त़ुकला और समृद्ध इतिहास के लिए जाने जाते हैं। भारत के कुछ प्रमुख मंदिरो के नाम यहां हमने सूचीबद्ध किये है। भारत के प्रमुख मंदिर सूची क्र. संख्या प्रसिद्द मंदिर स्थान 1 बद्रीनाथ मंदिर बद्रीनाथ, उत्तराखंड 2 केदारनाथ मंदिर केदारनाथ, उत्तराखंड 3 यमुनोत्री मंदिर उत्तरकाशी, उत्तराखंड 4 गंगोत्री मंदिर गंगोत्री, उत्तराखंड 5 हिडिम्बा देवी मंदिर मनाली, हिमाचल प्रदेश 6 अमरनाथ मंदिर पहलगाम, जम्मू कश्मीर 7 माता वैष्णो देवी मंदिर कटरा, जम्मू कश्मीर 8 मार्तण्ड सूर्य मंदिर अनंतनाग, कश्मीर 9 काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी, उत्तर प्रदेश 10 प्रेम मंदिर मथुरा, उत्तरप्रदेश