शिव स्तुति: "आशुतोष शशांक शेखर"...
अत्यंत मनोहर और भक्तिपूर्ण शिव स्तुति जिसका प्रारंभ इन दिव्य नामों से होता है "आशुतोष", "शशांक शेखर", "त्रिलोचन", "नीलकंठ" आदि — जो भगवान शिव के स्वरूप, गुण और कृपा को दर्शाते हैं। शिव स्तुति एक अत्यंत शक्तिशाली, मधुर और काव्यात्मक रचना है, जिसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों, गुणों और स्वरूपों का भावपूर्ण वर्णन किया गया है।
॥ शिव स्तुति ॥
(श्रद्धा से समर्पित शिव जी को)
आशुतोष शशाँक शेखर,
चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू,
कोटि नमन दिगम्बरा ॥
निर्विकार ओमकार अविनाशी,
तुम्ही देवाधि देव,
जगत सर्जक प्रलय करता,
शिवम सत्यम सुंदरा ॥
निरंकार स्वरूप कालेश्वर,
महा योगीश्वरा,
दयानिधि दानिश्वर जय,
जटाधार अभयंकरा ॥
शूल पानी त्रिशूल धारी,
औगड़ी बाघम्बरी,
जय महेश त्रिलोचनाय,
विश्वनाथ विशम्भरा ॥
नाथ नागेश्वर हरो हर,
पाप साप अभिशाप तम,
महादेव महान भोले,
सदा शिव शिव संकरा ॥
जगत पति अनुरकती भक्ति,
सदैव तेरे चरण हो,
क्षमा हो अपराध सब,
जय जयति जगदीश्वरा ॥
जनम जीवन जगत का,
संताप ताप मिटे सभी,
ओम नमः शिवाय मन,
जपता रहे पञ्चाक्षरा ॥
आशुतोष शशाँक शेखर,
चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू,
कोटि नमन दिगम्बरा ॥
कोटि नमन दिगम्बरा..
कोटि नमन दिगम्बरा..
कोटि नमन दिगम्बरा..
शिव स्तुति सारांश और भावार्थ:
1. शिव के विविध नामों का स्मरण:
"आशुतोष शशाँक शेखर,
चन्द्र मौली चिदंबरा..."
शिव जी के ये नाम उनकी कृपा, ज्ञान और सौंदर्य का परिचायक हैं।
2. उनकी महिमा का वर्णन:
"निर्विकार ओंकार अविनाशी,
तुम्ही देवाधि देव..."
3. शिव का योग, शांति और रौद्र रूप:
"निरंकार स्वरूप कालेश्वर,
महा योगीश्वरा..."
"शूल पानी त्रिशूल धारी,
औगड़ी बाघम्बरी..."
4. भक्ति और प्रार्थना का भाव:
"जगत पति अनुरकती भक्ति,
सदैव तेरे चरण हो..."
"ओम नमः शिवाय मन,
जपता रहे पञ्चाक्षरा..."
भक्त का निवेदन है कि_
— हे शिव! मेरा मन सदा आपके पंचाक्षरी मंत्र का जप करता रहे।
— मेरे अपराध क्षमा हो जाएँ।
— मुझे आपके चरणों की भक्ति प्राप्त हो।
इस स्तुति का उपयोग कब करें?
शिवरात्रि, सोमवार, श्रावण मास, या नित्य शिव पूजन में, ध्यान एवं जाप से पहले आरती या ध्यान के उपरांत इस स्तुति का पाठ अत्यंत फलदायी होता है।
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