केदारनाथ मंदिर का इतिहास...
भारतवर्ष में हिन्दुओं में तीर्थ दर्शन की करने की मान्यता है, जोकि प्राचीन समय से चल रही है, देश में कई तीर्थ स्थान हैं जहाँ दुनिया के कोने – कोने से लोग दर्शन करने आते हैं. उनका मानना है, कि इन तीर्थ स्थानों के दर्शन करने से जीवन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. तीर्थ स्थान की बात आती है, तो सबसे पहले उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर का नाम सामने आता है। 5 साल पहले जून २०१३ के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। मंदिर के आसपास कि मकानें बह गई । इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया। यहाँ बहुत ही गंभीर त्रासदी हुई थी, उस दिल दहला देने वाली त्रासदी को एक फिल्म के माध्यम से भी दर्शाया गया था।
केदारनाथ मंदिर:
मंदिर भगवान शिव शंकर जी का मंदिर हैं, जोकि भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ में मंदाकिनी नदी के पास गढ़वाल हिमालयी सीमा पर स्थित है। यह ऋषिकेश से 221 Kms और दिल्ली से 452 Kms की दूरी पर है, केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है।
यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। इस अवधि में भगवान शिव के दर्शन करने के लिए दूर – दराज के लोग यहाँ आते हैं। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया।
केदारनाथ मंदिर के पास में बहने वाली मंदाकिनी नदी एवं बर्फ की चादर ओढ़े हुए पहाड़ों के रूप में यहाँ का दृश्य बहुत ही शानदार है। केदारनाथ के इस शांत वातावरण एवं अदभुत दृश्य को देखकर लोग इसकी ओर आकर्षित हो जाते है। सर्दियों के दौरान, केदारनाथ मंदिर से देवताओं को उखीमठ लाया जाता है और वहां 6 महीने तक पूजा की जाती है। केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा ‘केदार खंड के भगवान’ के रूप में की जाती है। यह मंदिर विशेष रूप से हिन्दुओं के लिए सबसे प्रमुख तीर्थस्थानों में से एक है।
केदारनाथ मंदिर से जुडी कहानी:
यह घटना उस समय की है जब पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। भगवान शिव उन्हें माफ़ नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपना रूप परिवर्तित कर बैल, नंदी का रूप धारण किया और पहाड़ों में छिपे हुए मवेशियों के बीच खुद छिप गये लेकिन पांडवों में से एक भीम ने भगवान शिव को पहचान लिया। फिर वे उनके सामने से गायब होने की कोशिश करने लगे। किन्तु भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली और उन्हें पांडवों को माफ़ करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जहाँ से वे गायब हुए उसे गुप्तकाशी कहा जाता है। गुप्तकाशी से गायब हो कर भगवान शिव 5 अलग अलग रूपों में प्रकट हुए थे। जैसे केदारनाथ में उनके कूल्हे, रुद्रनाथ में चेहरा, तुंगनाथ में हाथ, मध्यमहेश्वर में नाभि और पेट एवं कल्पेश्वर में उनकी जटा आदि. इन पांचों स्थानों को ‘पंच केदार’ के नाम से जाना जाता है।
केदारनाथ के बारे में एक और मान्यता है भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि पूजा एवं तपस्या करने के लिए बद्रीका गाँव गये और वहां भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए। नार – नारायण जी ने शिव जी से मानवता के कल्याण के लिए उन्हें मूल रूप में वहाँ रहने के लिए कहा था। उनकी इच्छा पूरी करते हुए भगवान शिव उस स्थान पर रहने के लिए सहमत हो गए, जोकि अब केदार के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार उन्हें केदारेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
2013 की त्रासदी:
2013 में भारत के उत्तराखंड राज्य में बहुत ही भयानक त्रासदी हुई थी। 16 एवं 17 जून 2013 को उत्तराखंड राज्य के अन्य हिस्सों के साथ ही केदारनाथ घाटी पर अभूतपूर्व बाढ़ आई थी। दरअसल 16 जून को शाम लगभग 7:30 बजे केदारनाथ मंदिर के पास बहुत तेज गडगडाहट की आवाज के साथ भूस्खलन शुरू हुआ। इस भयंकर गर्जना के बाद मंदकिनी नदी के नीचे चोराबरी ताल या गाँधी ताल में लगभग 8:30 बजे से भारी मात्रा में पानी गिरना शुरू हो गया। 17 जून 2013 को सुबह लगभग 6:40 पर सरस्वती नदी और चोरबारी ताल या गाँधी ताल का बहाव बहुत तेजी से बढ़ने लगा। जिससे बहाव में इसके साथ बड़ी मात्रा में चट्टान, पत्थर टूटकर बहने लगे। एक तरफ बाढ़ के पानी के सामने जो भी आये, वह उसे अपने साथ बहा ले जा रहा था। वहीं दूसरी तरफ केदारनाथ मंदिर के पीछे एक बड़ी सी चट्टान आकर फंस गई। उस भयंकर बाढ़ से उस चट्टान ने मंदिर की रक्षा की और बाढ़ के पानी के साथ बहने वाला पूरा मलबा मंदिर के दोनों ओर से बहता रहा पर मंदिर को कुछ नहीं हुआ। उत्तराखंड में आई इस बाढ़ में आसपास के अधिकतर क्षेत्र, स्थानीय लोग, दुकाने, होटल एवं तीर्थ यात्रियों की बड़ी संख्या में क्षति हुई। लोगों ने मंदिर के अंदर कई घंटों तक आश्रय लिया, जब तक भारतीय सेना ने उन्हें सुरक्षित स्थानों तक नहीं पहुंचाया।
दर्शन का समय:
केदारनाथ जी का मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रात 6:00 बजे खुलता है और दोपहर तीन से पाँच बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। फिर पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है। पाँच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है। रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।
शीतकाल में केदारघाटी बर्फ़ से ढँक जाती है। यद्यपि केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व (वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पूर्व) बन्द हो जाता है और 6 माह बाद अर्थात वैशाखी (13 से14 अप्रैल) के बाद कपाट खुलता है।
ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं। प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं।
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