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Showing posts from November, 2022

Hanuman Vadvanal Stotra\Hanumaan vadavaanal strot ke laabh, sahee vidhi

हनुमान वडवानल स्तोत्र श्री हनुमान् बडबानल स्तोत्रम्... हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना विभीषण द्वारा की गयी थी जो की भगवान राम व हनुमान जी के अनन्य भक्त थे। यह स्त्रोत हनुमान जी की उपासना करने का एक महामंत्र है, अपने सभी रोगों के निवारण के लिए, अपनी दीर्घायु, स्वास्थ्य और धन की वृद्धि के लिए, शत्रु विनाश के लिए इस हनुमान बडबनला स्तोत्र का जप करें। सभी पापों के लिए और श्री सीता रामचंद्र की प्रसन्नता के लिए। यदि इसके साथ हनुमान चालीसा का पाठ भी किया जाए तो अविश्वसनीय रूप से फलदायी होता है। विभीषण ने सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति के लिए इस ‘हनुमान वडवानल स्तोत्र’ की रचना की। इस स्तोत्र पर श्री राम, हनुमान जी के आशीर्वाद के साथ साथ विभीषण जी का तपोबल भी सम्मिलित है। इस स्तोत्र के प्रारंभ में हनुमान जी के गुणों तथा शक्तियों की जबरदस्त प्रशंसा की गयी है। हनुमान जी से खराब स्वास्थ्य और सभी प्रकार की परेशानियों को दूर करने का अनुरोध किया गया, साथ ही सभी प्रकार के भय, परेशानी से रक्षा करने और सभी बुरी आदतों से मुक्त करने का अनुरोध किया गया है। हनुमान जी से आशीर्वाद, तथा अपने जीवन

Narasimha Stotra/Shri Narasimha Stotra in Sanskrit

Shri Narasimha Stotra in Sanskrit – नरसिंह स्तोत्र श्री नृसिंह स्तोत्र... नरसिंह स्तोत्र भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली अवतार नरसिंह भगवन को समर्पित है, इन्हें बुराई पर अच्छाई की जीत का अवतार माना जाता है। विष्णु ने यह भयंकर रूप हिमवत पर्वत (हरिवंश) की चोटी पर धारण किया था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने राक्षस राजा हिरण्यकश्यप को नष्ट करने के लिए यह अवतार लिया था। नरसिंह भगवान महाविष्णु की सबसे शक्तिशाली अभिव्यक्तियों में से एक है। संस्कृत में कई मंत्र भगवान नरसिंह की स्तुति और प्रार्थना करते हैं और किसी भी चुने हुए नरसिंह स्तोत्र को उचित श्रद्धा, परिश्रम और भक्ति के साथ जप करने से भय दूर होता है और भक्तों पर सभी बाधा दूर होती हैं। भगवान नरसिंह का आधा मानव और आधा सिंह का रूप है, जहां धड़ और निचला शरीर मानव का है जबकि चेहरा और पंजे एक क्रूर शेर के हैं। नरसिंह स्तोत्र का वर्णन श्री नरसिंह पुराण में मिलेगा। जिस भी व्यक्ति पर बहुत अधिक कर्ज हो गया हो तो नरसिंह स्तोत्र का नियमित पाठ करने से आपका कर्ज उतरना शुरू हो जाता है। यदि जातक अधिक कष्ट में है तो 90 दिन लगातार नरसिंह स्तोत

Kalikashtakam\Kalika Ashtakam in Sanskrit

कालिकाष्टकम् कालिका अष्टकम स्तोत्र का पाठ करें... महाकाली का यह अद्बुध अष्टक कालिका अष्टकम ध्यान व पूजन करते समय इस स्तोत्र का पाठ करें। इससे साधक की सभी मनोकामना सिद्ध होती है और महाकाली की कृपा प्राप्त करें। || कालिकाष्टकम् || || ध्यान || गलद् रक्तमण्डावलीकण्ठमाला महाघोररावा सुदंष्ट्रा कराला । विवस्त्रा श्मशानलया मुक्तकेशी महाकालकामाकुला कालिकेयम् ॥१॥ भुजेवामयुग्मे शिरोऽसिं दधाना वरं दक्षयुग्मेऽभयं वै तथैव । सुमध्याऽपि तुङ्गस्तना भारनम्रा लसद्रक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या ॥ २॥ शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची । शवाकारमञ्चाधिरूढा शिवाभि-श्चर्दिक्षुशब्दायमानाsभिरेजे ॥३॥ || स्तुति || विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन् समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवु: । अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥४॥ जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम् । वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥५॥ इयं स्वर्गदात्री पुन: कल्पवल्ली मनोजांस्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात् । तथा ते कृता

Balamukunda Ashtakam/Sri Balamukunda Ashtakam Stotram in Sanskrit

श्री बालमुकुन्दाष्टकम् स्तोत्रम् श्री बालमुकुन्दाष्टकम् स्तोत्रम्... श्री बालमुकुन्दाष्टकम् स्तोत्रम् में भगवान कृष्ण के बाल रूप का सुमिरण किया है। साधक ने भगवान के उस बाल स्वरुप ईश्वर को अपने मन में धारण किया है। अपने मन से सभी के कल्याण के लिए भगवान बालक अवतार मुकुंद को याद है। ।। श्री बालमुकुन्दाष्टकम्: ।। करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् । वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मारामि ॥१॥ संहृत्य लोकान् वटपत्रमध्ये शयानमाद्यन्तविहीनरूपम् । सर्वेश्वरं सर्वहितावतारं बालं मुकुन्दं मनसा स्मारामि ॥२॥ इन्दीवरश्यामलकोमलाङ्गं इन्द्रादिदेवार्चितपादपद्मम् । सन्तानकल्पद्रुममाश्रितानां बालं मुकुन्दं मनसा स्मारामि ॥३॥ लंबालकं लंवितहारयष्टिं शृङ्गारलीलाङ्कितदन्तपङ्क्तिम् । बिंबाधरं चारुविशालनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मारामि ॥४॥ शिक्ये निधायाद्य पयोदधीनि बहिर्गतायां व्रजनायिकायाम् । भुक्त्वा यथेष्टं कपटेन सुप्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मारामि ॥५॥ कलिन्दजान्तस्थितकालियस्य फणाग्ररङ्गे नटनप्रियन्तम् । तत्पुच्छहस्तं शरदिन्दुवक्त्रं ब

Ganesha Mantra/Sri Ganesh ka Puja Mantra in Hindi

श्री गणेश मंत्र श्री गणेश जी के मंत्र... श्री गणेश सभी देवताओं में पूजनीय है। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करने से सभी विघ्न-बाधाएं हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं। भगवान श्री गणेश को एकदंत और व‍िघ्‍नहर्ता के नाम से भी पुकारा जाता है। धर्म के अनुसार भगवान श्री गणेश को कार्यों को सफल बनाने वाला देवता माना जाता है। इस ही लिए भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना सर्वप्रथम की जाती है। बुधवार का दिन भगवान श्री गणेश का दिन माना जाता है। इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करने से सब विघ्न बाधाएं हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं। किसी भी कार्य को शुभ तरीके से करने से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करनी बहुत आवश्यक होती है। बुधवार के दिन भगवान श्री गणेश का किस तरह से और किन मंत्रों के उच्चारण के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। 卐 श्री गणेश मंत्र 卐 एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।। महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।। गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।। बुधवार के दिन भगवान

Khatu Shyam/Shri Khatu Shyam Ji Aarti in Hindi

श्री खाटू श्याम जी का चालीसा श्री खाटू श्याम जी की आरती... श्री खाटू श्याम जी को हारे का सहारा कहा जाता है। खाटू श्याम जी को सबसे बड़ा दाता कहा गया है क्योंकि उन्होंने अपने शीश का दान दिया था। महाभारत कथा के अनुसार जब कौरव और पांडव में युद्ध हो रहा था, तब श्री कृष्ण जी ने ब्राह्मण का रूप लेकर खाटूश्यामजी से अपने शीश का दान मांगा था। ऐसा माना जाता है, खाटूश्याम जी जिनका नाम बर्बरीक था, बहुत ही वीर योद्धा थे, उनको दुर्गा माता से विजय होने का वरदान प्राप्त था। बर्बरीक हमेशा हारने वाले का साथ देंगे, जब श्री कृष्ण जी को पता चली तब उन्होंने उनसे ब्राह्मण का रूप लेकर उनके शीश का दान मांग लिया। बर्बरीक अपनी बात पर अडिग रहें और उन्होंने अपने शीश का दान श्री कृष्ण जी को कर दिया। इससे प्रसन्न होकर श्री कृष्ण जी ने उन्हें वरदान दिया कि वह कलयुग में उनके श्याम नाम से प्रसिद्ध होंगे। कलयुग में जो भी इनका नाम लेगा उसके सभी संकट दूर हो जाएंगे। इनको हारे का सहारा, शीश का दानी, खाटू श्याम जी आदि नाम से जाना जाता है। इनका शीश सीकर जिले के खाटू नामक कस्बे में दफनाया गया था, इसीलिए इनको ख

Khatu Shyam Ji\KHATU SHYAM CHALISA IN HINDI

श्री खाटू श्याम जी का चालीसा श्री खाटू श्याम जी का चालीसा... श्री खाटू श्याम जी को हारे का सहारा कहा जाता है। खाटू श्याम जी को सबसे बड़ा दाता कहा गया है क्योंकि उन्होंने अपने शीश का दान दिया था। महाभारत कथा के अनुसार जब कौरव और पांडव में युद्ध हो रहा था, तब श्री कृष्ण जी ने ब्राह्मण का रूप लेकर खाटूश्यामजी से अपने शीश का दान मांगा था। ऐसा माना जाता है, खाटूश्याम जी जिनका नाम बर्बरीक था, बहुत ही वीर योद्धा थे, उनको दुर्गा माता से विजय होने का वरदान प्राप्त था। बर्बरीक हमेशा हारने वाले का साथ देंगे, जब श्री कृष्ण जी को पता चली तब उन्होंने उनसे ब्राह्मण का रूप लेकर उनके शीश का दान मांग लिया। बर्बरीक अपनी बात पर अडिग रहें और उन्होंने अपने शीश का दान श्री कृष्ण जी को कर दिया। इससे प्रसन्न होकर श्री कृष्ण जी ने उन्हें वरदान दिया कि वह कलयुग में उनके श्याम नाम से प्रसिद्ध होंगे। कलयुग में जो भी इनका नाम लेगा उसके सभी संकट दूर हो जाएंगे। इनको हारे का सहारा, शीश का दानी, खाटू श्याम जी आदि नाम से जाना जाता है। इनका शीश सीकर जिले के खाटू नामक कस्बे में दफनाया गया था, इसीलिए इनको

Ganesh/Ashtottara/Satnama/Stotram/Shri Ganesha Ashtottara Satanama Stotram in Sanskrit/hindi

विघ्नेश्वर अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम् श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्... श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र गौरी पुत्र श्री गणेश जी को समर्पित हैं। जो भी जातक श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करता हैं उसके सारे डर दूर हो जाते हैं। इसका प्रतिदिन जाप करें और सिद्धि विनायक की कृपा प्राप्त करें। 卐 विघ्नेश्वर अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् 卐 विनायको विघ्नराजो गौरीपुत्रो गणेश्वरः । स्कंदाग्रजोऽव्ययः पूतो दक्षोऽध्यक्षो द्विजप्रियः ॥ १ ॥ अग्निगर्वच्छिदिंद्रश्रीप्रदो वाणीप्रदोऽव्ययः सर्वसिद्धिप्रद-श्शर्वतनयः शर्वरीप्रियः ॥ २ ॥ सर्वात्मकः सृष्टिकर्ता देवोऽनेकार्चितश्शिवः । शुद्धो बुद्धिप्रिय-श्शांतो ब्रह्मचारी गजाननः ॥ ३ ॥ द्वैमात्रेयो मुनिस्तुत्यो भक्तविघ्नविनाशनः । एकदंत-श्चतुर्बाहु-श्चतुर-श्शक्तिसंयुतः ॥ ४ ॥ लंबोदर-श्शूर्पकर्णो हर-र्ब्रह्मविदुत्तमः । कालो ग्रहपतिः कामी सोमसूर्याग्निलोचनः ॥ ५ ॥ पाशांकुशधर-श्चंडो गुणातीतो निरंजनः । अकल्मष-स्स्वयंसिद्ध-स्सिद्धार्चितपदांबुजः ॥ ६ ॥ बीजपूरफलासक्तो वरद-श्शाश्वतः कृती । विद्वत् प्रियो वीतभयो गदी चक्र