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Somvar Vrat Katha Or Puja Vidhi-सोमवार व्रत कथा

सोमवार व्रत कथा

सोमवार व्रत कथा...

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूर्ण करें...
सोमवार व्रत विधि: पौराणिक ग्रंथो में सोमवार के व्रत की विधि का वर्णन करते हुए बताया गया है। सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके शिव जी को जल और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए तथा शिव-गौरी की पूजा करनी चाहिए। शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए. इसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए। साधारण रूप से सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है, मतलब शाम तक रखा जाता है।
सोमवार व्रत तीन प्रकार के होता है- प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है।

व्रत कथा:

बहुत समय पहले, एक नगर में एक साहूकार रहता था. वह बहुत ही धर्मात्मा और भगवान शिव का भक्त था। उसके घर में धन और वैभव की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण से वह बहुत दुखी था। पुत्र की प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता।
साहूकार की भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं, और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया। भगवान शिव ने पार्वती जी की इच्छा सुनकर कहा कि हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उनके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो होता है उसे वही भोगना पड़ता है। 'लेकिन माता पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।
माता पार्वती जी के आग्रह पर भगवान शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया परन्तु साथ ही यह भी बताया कि उसके पुत्र की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की बात को साहूकार सुन रहा था। परन्तु उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति प्रत्येक सोमवार भगवान शिव जी की पूजा अर्चना करता रहा। कुछ समय बीता और साहूकार के घर में एक पुत्र का जन्म हुआ। वह बालक समय के साथ साथ बड़ा हुआ और तब उस बालक की आयु ग्यारह वर्ष की हुई तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और यात्रा से सम्बंधित सामान और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ करते हुए जाना। जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन करना और दक्षिणा देते हुए जाना। दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल दिए। चलते चलते एक नगर पड़ा जहां दोनों ने रात बितानी थी। और उसी नगर के राजा की कन्या का विवाह था। परन्तु जिस राजकुमार का विवाह उस राजा की कन्या से होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को राजा से छुपाने के लिए एक चाल सोची। दोनों पथिक को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। और उस राजा ने दोनों बंदी बना कर उस लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार और चरित्रवान युवक था। उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी।
उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि 'तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं। 'जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ। और फिर शिवजी के वरदानुसार कुछ ही छन बाद में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख मामा विलाप करने लगा। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। माता पार्वती जी ने भगवान शिव जी से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें।
तब भगवान शिव जी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है। लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती जी ने कहा कि हे महादेव, आप कृप्या इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।
माता पार्वती जी के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी और माता पार्वती जी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। चलते-चलते हुए दोनों उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया।
साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात सपने में साहूकार को भगवान शिव ने दर्शन दिये और कहा कि हे भक्त तुम्हारी श्रद्धा व भक्ति को देखकर, सोमवार का व्रत रखने व कथा करने से मैं प्रसन्न हूं और तुम्हारे पुत्र को दीर्घायु का वरदान देता हूं।
अगले ही दिन अपने पुत्र को देखकर खुशी के मारे उनकी आंखे झलक आयी और साहूकार ने भगवान शिव व माता पार्वती को नमन किया।
सोमवार का व्रत करने व कथा सुनने पढ़ने से व्रती की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।
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