अर्द्धनारीश्वर शिव स्तोत्र...
अर्धनारीश्वर शिव स्तोत्र: भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित। सोमवार के दिन महादेव और माता पार्वती की श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है। साथ ही शिव भक्त सोमवार का व्रत भी रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि सोमवार का व्रत रखने और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। इस व्रत को स्त्री-पुरुष दोनों कर सकते हैं। सोमवार के दिन जलाभिषेक का विशेष महत्व है। सोमवार के दिन बड़ी संख्या में शिवभक्त मंदिरों में जलाभिषेक के लिए आते हैं। जलाभिषेक से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आप भी भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो हर सोमवार को जलाभिषेक के समय अर्धनारीश्वर स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है। अपने परिवार के लिए सुख समृद्धि पाना के लिए सोमवार के दिन शिव स्तुति का जाप करना आपके लिए लाभकारी होगा और स्तुति का सच्चे मन से करने पर भगवान भोले नाथ खुश होकर आशीर्वाद देते है।
॥ अर्द्धनारीश्वर शिव स्तोत्र ॥
॥ ॐ नमः शिवाय ॥
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजः पुंजविचर्चिताय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय...
चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय ।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय ।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय ।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय ।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी ।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि: ॥
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
॥ इति आदिशंकराचार्य विरचित शिव अर्धनारीश्वर सम्पूर्णम् ॥
शिव महापुराण में उल्लेख है कि - 'शंकर: पुरुष: सर्वे स्त्री: सर्व महेश्वरी।'
अर्थात् सभी पुरुष भगवान शिव के ही अंश हैं और सभी स्त्रियाँ माँ भगवती शिव के ही अंश हैं, यह संपूर्ण चराचर जगत उन्हीं भगवान अर्धनारीश्वर से व्याप्त है। शक्ति के साथ शिव सब कुछ करने में सक्षम हैं, लेकिन शक्ति के बिना शिव कंपन भी नहीं कर सकते। इसलिए, कोई भी पापी व्यक्ति सर्वोच्च शिव शक्ति की पूजा या स्तुति नहीं कर सकता है, जिनकी पूजा ब्रह्मा, विष्णु, देवी, देवताओं आदि द्वारा की जाती है। केवल महान पुण्य के माध्यम से ही किसी को शिव शक्ति की स्तुति करने का पुण्य मिलता है।
शिव पुराण, नारद पुराण और अन्य पुराणों में भी इसका उल्लेख है कि यदि शिव और माता पार्वती ने यह रूप धारण न किया होता तो पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति ही नहीं होती।
भगवान अर्धनारीश्वर के अवतार की कथा शिव की शक्ति और सृष्टि की उत्पत्ति से संबंधित है। शिव ने अर्धनारीश्वर अवतार क्यों लिया और इसका ब्रह्मांड की उत्पत्ति से क्या संबंध है?
भगवान शिव की पूजा सदियों से होती आ रही है। भगवान शिव ने यह रूप अपनी इच्छा से धारण किया था। इस फॉर्म के जरिए वह लोगों को यह संदेश देना चाहते थे कि पुरुष और महिलाएं एक समान हैं।
भगवान शंकर के अर्धनारीश्वर अवतार में शिव का आधा शरीर स्त्री का और आधा पुरुष का है। शिव का यह अवतार स्त्री-पुरुष की समानता को दर्शाता है। समाज, परिवार और जीवन में महिलाओं का भी उतना ही महत्व है जितना पुरुषों का।
एक बार भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का कार्य समाप्त कर लिया। तब उन्होंने देखा कि उनके द्वारा बनाये गये ब्रह्माण्ड में विकास की कोई गति नहीं है। उन्होंने विजयी पशु-पक्षी और कीड़े-मकौड़े पैदा किये हैं, उनकी संख्या नहीं बढ़ रही है। यह देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हो गये। ब्रह्मा जी अपनी चिंता लेकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से भगवान शिव की आराधना करने को कहा। वह तुम्हें समाधान बता देगा। इसके बाद ब्रह्मा जी ने शिव की तपस्या शुरू कर दी। इससे भगवान शिव प्रकट हुए और मैथुनी सृष्टि की रचना का आदेश दिया।
ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से पूछा कि मौथुनि सृष्टि कैसी होगी? ब्रह्मा जी को सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए भगवान शिव ने अपने शरीर का आधा भाग स्त्री के रूप में प्रकट किया। इसके बाद नर और मादा के अंग अलग हो गए। भगवान ब्रह्मा उस स्त्री को प्रकट करने में असमर्थ थे। इसलिए भगवान ब्रह्मा की प्रार्थना पर शिव यानी शिव के स्त्री रूप ने अपने रूप से एक और स्त्री की रचना की और उसे भगवान ब्रह्मा को सौंप दिया।
इसके बाद अर्धनारीश्वर रूप संगठित होकर पुनः पूर्ण शिव के रूप में प्रकट हुआ। फिर मैथुनी सृष्टि से संसार का तेजी से विकास होने लगा। शिव का स्त्री रूप बाद में हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लेकर शिव से मिलन किया।
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