अर्द्धनारीश्वर शिव स्तोत्र...
अर्धनारीश्वर स्तोत्र भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक दिव्य स्तुति है। यह स्तोत्र शिवभक्तों के लिए विशेष रूप से सोमवार के दिन अत्यंत फलदायक माना जाता है।
सोमवार को महादेव और माता पार्वती की श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है। इस दिन शिव भक्त व्रत रखते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से साधक की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायक है। विशेष रूप से सोमवार के दिन जलाभिषेक का अत्यंत महत्व है। हजारों शिवभक्त मंदिरों में आकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं, जिससे भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
यदि आप भी भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो हर सोमवार को जलाभिषेक के साथ-साथ अर्धनारीश्वर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से शिव और पार्वती दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
परिवार में सुख, शांति और समृद्धि के लिए सोमवार के दिन शिव स्तुति का जाप अवश्य करें। सच्चे मन से की गई स्तुति से भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
॥ अर्द्धनारीश्वर शिव स्तोत्र ॥
॥ ॐ नमः शिवाय ॥
॥ इति आदिशंकराचार्य विरचित शिव अर्धनारीश्वर सम्पूर्णम् ॥
शिव महापुराण में उल्लेख है कि - 'शंकर: पुरुष: सर्वे स्त्री: सर्व महेश्वरी।'
अर्थात् सभी पुरुष भगवान शिव के ही अंश हैं और सभी स्त्रियाँ माँ भगवती शिव के ही अंश हैं। यह संपूर्ण चराचर जगत उन्हीं भगवान अर्धनारीश्वर से व्याप्त है। शक्ति के साथ शिव सब कुछ करने में सक्षम हैं, लेकिन शक्ति के बिना शिव कंपन भी नहीं कर सकते।
इसलिए, कोई भी पापी व्यक्ति सर्वोच्च शिव शक्ति की पूजा या स्तुति नहीं कर सकता, जिनकी पूजा स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, देवी और समस्त देवगण करते हैं। केवल महान पुण्य के फलस्वरूप ही किसी को शिव शक्ति की स्तुति का अवसर मिलता है।
शिव पुराण, नारद पुराण और अन्य पुराणों में भी उल्लेख मिलता है कि यदि शिव और माता पार्वती ने अर्धनारीश्वर रूप धारण न किया होता तो इस पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति ही संभव नहीं होती।
भगवान अर्धनारीश्वर के अवतार की कथा शिव की शक्ति और सृष्टि की उत्पत्ति से संबंधित है। शिव ने यह अवतार क्यों लिया और इसका ब्रह्मांड की रचना से क्या संबंध है – यह अत्यंत गूढ़ रहस्य है।
भगवान शिव ने यह रूप अपनी इच्छा से धारण किया था, जिससे वे यह संदेश देना चाहते थे कि पुरुष और महिलाएं समान हैं। शिव के अर्धनारीश्वर अवतार में आधा शरीर स्त्री का और आधा पुरुष का है, जो स्त्री-पुरुष की समानता और एकता का प्रतीक है।
यह रूप यह भी दर्शाता है कि समाज, परिवार और जीवन में स्त्री का महत्व पुरुष के बराबर है।
एक बार जब भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना पूरी की, तो उन्होंने देखा कि उनकी सृष्टि में विकास नहीं हो रहा। जीव-जंतु उत्पन्न तो हुए, लेकिन उनकी संख्या नहीं बढ़ रही थी। चिंतित होकर वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने की सलाह दी।
ब्रह्मा जी ने शिव की कठोर तपस्या की। प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें मैथुनी सृष्टि (नर-मादा आधारित सृष्टि) की रचना का आदेश दिया।
ब्रह्मा जी ने पूछा – "मैथुनी सृष्टि कैसी होगी?" इसके उत्तर में शिव ने अपने शरीर का आधा भाग स्त्री रूप में प्रकट किया। इसके बाद नर और मादा के अंग पृथक हुए।
ब्रह्मा उस स्त्री को स्वयं उत्पन्न नहीं कर सके, इसलिए शिव के स्त्री रूप ने एक और स्त्री उत्पन्न की और उसे ब्रह्मा को सौंप दिया।
इसके बाद शिव पुनः पूर्ण रूप में प्रकट हुए और मैथुनी सृष्टि से सृष्टि का विस्तार होने लगा। वही स्त्री रूप आगे चलकर हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्मी और शिव से पुनः मिलन किया।
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