श्री धरती माता चालीसा...
श्री धरती माता को हिन्दू धर्म में धैर्य, पोषण, क्षमा और स्थिरता की देवी माना गया है। यह चालीसा भक्तों को प्रकृति प्रेम, संतुलन और सदाचार की भावना से भर देती है। "श्री भूमि माता चालीसा" का संपूर्ण पाठ – 40 चौपाइयों (श्लोकों) में, जिसमें धरती माता (भूमि देवी) की महिमा, उपकार और कृपा का भव्य वर्णन है।
॥ श्री धरती माता चालीसा ॥
(पृथ्वी देवी की महिमा में भक्ति-पूर्ण चालीसा)
॥ दोहा ॥
जय जय जय धरती मइया, तू जीवन की खान।
तेरी शरण जो आ गया, होय सुखी इंसान॥
॥ चौपाई ॥
जयति जय भूमि जगत की धरणी।
पालक माता, सृष्टि चरणी॥
अन्न, जल, फल, धन की दाता।
सबको देवे तू सुख माता॥
पवन, अग्नि, जल तज पावे।
धरती पर ही जन्मत जावे॥
तेरे गर्भ बसे जीव अनंत।
तू ही त्रिलोकी की भगवंत॥
पर्वत, वन, नदी तू रूपा।
तेरे कण में ब्रह्म स्वरूपा॥
ब्रह्मा ने जब रची सृष्टि सारी।
तब तू बनी आधार हमारी॥
विष्णु वराह रूप जब धारा।
तुझे उबारा संकट सारा॥
तेरी पूजा ऋषि मुनि गावे।
कण-कण में ईश समावे॥
जननी रूप तव ममता भारी।
तू है सुखदाई सुखकारी॥
धूप, वर्षा, शीत सहेली।
फिर भी हरी-भरी तव झोली॥
चीर के सीना खेत सजाया।
जन-जन को जीवन दिलवाया॥
जीव सभी तव अंश कहावे।
सब पर सम कृपा बरसावे॥
तेरे कण में ज्योति बसी है।
धैर्य-शांति की शक्ति तुझी में॥
भू-लोक तव रूप अनोखा।
सहनशीलता तव सद्गुण शोभा॥
तू ही लालन, तू ही पालन।
सत्य, धर्म, करुणा की साधन॥
विपदा में जब पुकारे कोई।
सुन लेती है मइया सोई॥
पेड़, पौधे, पशु और जल।
सब कुछ दे तू कर अनुकूल॥
सागर, नदियाँ, नील गगन।
तुझसे जुड़ा है हर वंदन॥
प्रभु श्रीराम ने तुझको निहारा।
वनवास में चरण तव प्यारा॥
सीता माता को तू प्यारी।
वन में संगिनी तू साक्षातारी॥
कृषकजन तव सेवा करते।
धरती को माँ कह कर पुकारते॥
तव गोदी में तर्पण होता।
श्राद्ध, व्रत, यज्ञ सफल होता॥
अन्नपूर्णा का यह विस्तार।
तेरे ही तन में साकार॥
गोवर्धन पूजन तव सेवा।
तुझमें बसी हर देवि-देवा॥
जल-जंगल और जमीन की रक्षा।
मानव धर्म तव ही उपक्षा॥
प्रदूषण से रोती है माता।
रक्षा करना ही तव सेवा सच्चा॥
जो तुझे पूजें भाव से।
वंदित होय ब्रह्मा, विष्णु भाव से॥
पशु-पक्षी, कीट, पतंगा।
सब तव कृपा से हो अंग॥
वैभव, धन, संतति प्यारी।
सब तेरे कारण सुखकारी॥
तू ही गऊ, तू ही गायत्री।
सर्वत्र तव गाथा पावनत्री॥
धर्मराज भी तुझ पर टेका।
पृथ्वी को धर्म का देखा॥
सप्तपदी जब विवाह में लीजे।
तेरी साक्षी से वह होई साजे॥
जन्मभूमि और मातृभूमि।
दोनों तुल्य माने यह सुमति॥
वृक्ष लगाए जो तव सेवा।
उसका जीवन हो अमर, अमेवा॥
जो हर दिन तव गुण गाते।
सुख-शांति तव कृपा पाते॥
विनती करे भक्ति हिय धारी।
भूमि माता कर दो उद्धारी॥
अभाव, दुख, रोग मिटावो।
भक्तों का जीवन सुखद बनावो॥
दे दो हमें सद्बुद्धि संजीव।
रक्षण करें तव रूप अतीव॥
हर जीव को तव प्रेम दिखावें।
करुणा, सेवा से तुझको मनावें॥
जो नित चालीसा पढ़े तुम्हारा।
उस पर कृपा हो अपारा॥
॥ दोहा ॥
जो पढ़े धरती चालीसा, श्रद्धा भाव समेत।
भूमि माता रक्षा करे, नाशे हर संकट॥
श्री धरती माता चालीसा पाठ से लाभ:
- पर्यावरण के प्रति श्रद्धा और जागरूकता: धरती माता की स्तुति करने से व्यक्ति प्रकृति के प्रति संवेदनशील और कृतज्ञ बनता है।
- जीवन में संतुलन, संयम और धैर्य की वृद्धि: चालीसा का नियमित पाठ मानसिक स्थिरता, आत्मविश्वास और सहनशक्ति को बढ़ाता है।
- प्राकृतिक आपदाओं से बचाव की भावना: जब हम प्रकृति का सम्मान करते हैं, तो हम अपने कर्मों द्वारा पर्यावरण की रक्षा में योगदान देते हैं।
- खेती-बाड़ी, जीविका और गृह सुख में वृद्धि: विशेष रूप से कृषकों और गृहस्थों के लिए यह चालीसा अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
विशेष लाभ:
- भूमि पूजन, गृह निर्माण, खेती: इन अवसरों पर यह चालीसा पाठ अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है।
- विशिष्ट तिथियाँ: शुक्रवार, अमावस्या, वट सावित्री व्रत और वराह जयंती पर इसका पाठ विशेष फल देता है।
- विशेष आयोजनों पर: पर्यावरण दिवस, वृक्षारोपण, नवविवाह, गृह प्रवेश जैसे मौकों पर यह पाठ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
- नित्य पाठ के लाभ: जीवन में धैर्य, मानसिक शांति, स्थिरता, समृद्धि और प्रकृति संरक्षण की भावना विकसित होती है।
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