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श्री अर्गला स्तोत्रम्: रूप, जय, यश और सर्व बाधा निवारण का अचूक पाठ

श्री अर्गला स्तोत्रम्: शक्ति और सौभाग्य का अचूक मार्ग...

श्री अर्गला स्तोत्रम् श्री दुर्गा सप्तशती का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावी अंग है। "अर्गला" का शाब्दिक अर्थ बाधा या ताला होता है। इस स्तोत्र के पाठ का मूल उद्देश्य माँ भगवती से प्रार्थना करना है कि वह हमारे जीवन के मोक्ष, सुख और सफलता के मार्ग में लगे सभी तालों (बाधाओं) को खोल दें।

यह स्तोत्र मात्र पूजा का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में साधक को पूर्णता प्रदान करने वाला एक शक्तिशाली बीज मंत्र समूह है।

॥ अर्गला स्तोत्रम् ॥

ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य

विष्णुऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः

श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीमन्नवार्णवे

सप्तशतीपाठार्थे जपे विनियोगः॥

ॐ नमश्चण्डिकायै॥

मार्कण्डेय उवाच

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ॥१॥

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि।

जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते ॥२॥

मधुकैटभविद्रावि विधातृवरदे नमः।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥३॥

महिषासुरनिर्मुक्त शुण्डाग्रक्षतमेदिनि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥४॥

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥५॥

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥६॥

वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥७॥

अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥८॥

नतेभ्यः सर्वदा भद्रे चण्डिके दुरितापहे।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥९॥

स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१०॥

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्ति इह भक्तितः।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥११॥

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१२॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१३॥

सुरसुरासुरसेवितचण्डिके करोतु मे शुभम्।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१४॥

विधेहि द्वेषिणां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१५॥

विन्ध्याचल-वासिनीं चण्डीं सततं प्रणमाम्यहम्।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१६॥

प्रचण्डदैत्य-दर्पघ्ने चण्डिके प्रणतोऽस्मि ते।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१७॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रे संस्तुते परमेश्वरि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१८॥

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१९॥

हिमालयसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२०॥

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२१॥

देवि प्रचण्ड-दोर्दण्ड-दैत्य-दर्प-निशूदिनि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२२॥

देवि भक्तजनोद्दाम-दत्त-दत्तोदयेऽम्बिके।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२३॥

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।

तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवम् ॥२४॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।

स तु सप्तशतीसंख्यया समग्रां सम्पदाप्नुयात् ॥२५॥

॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

अर्गला स्तोत्रम् पाठ के सर्वोपरि लाभ:

इस स्तोत्र के नियमित और श्रद्धापूर्ण पाठ से साधक को माँ दुर्गा के तीन अमूल्य वरदान प्राप्त होते हैं, जो सीधे स्तोत्र की पंक्तियों में निहित हैं:

  1. रूपं देहि (तेज और सौन्दर्य):

    यह केवल शारीरिक सुंदरता नहीं, बल्कि आत्मिक तेज और प्रभावी व्यक्तित्व प्रदान करता है। साधक का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली बन जाता है कि वह जहाँ भी जाता है, वहाँ उसका सम्मान होता है।

  2. जयं देहि (विजय और सफलता):

    जीवन के हर संघर्ष, कोर्ट-कचहरी के मामलों, या नौकरी-व्यापार की प्रतिस्पर्धा में यह स्तोत्र विजय दिलाता है। यह आत्मविश्वास को चरम पर पहुँचाकर सफलता सुनिश्चित करता है।

  3. यशो देहि (कीर्ति और सम्मान):

    पाठक समाज में मान-सम्मान और शुभ कीर्ति प्राप्त करता है। उसका नाम और यश चारों दिशाओं में फैलता है।


अर्गला स्तोत्रम् के अन्य विशिष्ट वरदान:

  • सर्वोच्च शत्रुदमन ('द्विषो जहि'):

    स्तोत्र में बार-बार आने वाला यह वाक्यांश माँ भगवती से सभी शत्रुओं, ईर्ष्यालु लोगों और नकारात्मक शक्तियों के विनाश की प्रार्थना है। यह शत्रु पक्ष के षड्यंत्रों को विफल कर देता है और साधक को भयमुक्त बनाता है।

  • अखंड सौभाग्य एवं आरोग्य:

    यह स्तोत्र दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य का दाता है। माँ चण्डिका को व्याधिनाशिनि (रोगों का नाश करने वाली) के रूप में पूजकर साधक सभी गंभीर रोगों से मुक्ति पाता है।

  • उत्तम जीवनसाथी की प्राप्ति:

    विवाहेच्छुकों के लिए इसकी पंक्ति "पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्" बहुत फलदायी है। यह मन के अनुकूल, श्रेष्ठ गुणों वाली और गृहस्थ जीवन को सुखी बनाने वाली जीवनसंगिनी प्रदान करती है।

  • आर्थिक कष्टों से मुक्ति (ऋणमोचन):

    यह पाठ विशेष रूप से आर्थिक संकट और कर्ज (ऋण) से मुक्ति के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। माँ की कृपा से जीवन से दरिद्रता दूर होकर समृद्धि का वास होता है।


कैसे करें पाठ?

श्री अर्गला स्तोत्रम् का पाठ श्री दुर्गा सप्तशती के मूल पाठ से पहले किया जाता है। इसे नित्य प्रातःकाल या संध्याकाल में करना विशेष फलदायी होता है, खासकर नवरात्रि के दौरान।

क्या आप इस स्तोत्र के पाठ की पूर्ण विधि और सही समय के बारे में विस्तार से जानना चाहेंगे?
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