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Showing posts from June, 2025

Gayatri-Chalisa-Vedamata-Gayatri-Chalisa/श्री गायत्री चालीसा

श्री गायत्री चालीसा श्री गायत्री चालीसा... गायत्री माता को वेदमाता, संवित स्वरूपिणी (ज्ञान की साक्षात् चेतना), और सर्वदेवस्वरूपा शक्ति (सभी देवी-देवताओं की आदिशक्ति) के रूप में पूजा जाता है। उनकी स्तुति में रचित यह चालीसा बुद्धि, ज्ञान, तेज, और शांति प्रदान करती है। || श्री गायत्री चालीसा || ॥ दोहा ॥ जय गायत्री माता, मुनिजन-मन की प्रीत। बुद्धि-प्रदाता शक्ति तुम, नमुं सदा मन जीत॥ ॥ चालीसा ॥ जय गायत्री माता, त्रिभुवन की त्राता। वेदों की जननी, भवभय विनाशिनी दाता॥ पाँच मुखों में तेज विराजे, ज्ञान-ज्योति फैलाय। शुद्ध विचारों से जीवन में, हर मन ज्योति जगाय॥ सावित्री सुरसुन्दरी, ब्रह्मा की हो धारा। सत्व-रज-तम से परे, साक्षात् शक्ति अपारा॥ जिनका रूप अनूप सुहावन, सदा सजीव प्रकाश। गायत्री माँ शरण में आवे, मिटे तमस हरि-हास॥ ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः, मंत्रों की अधिष्ठात्री। ब्रह्मज्ञान से जो प्रकाशित, भव-सागर की नात्री॥ हृदय में जो ध्यावै तेरा, निर्मल हो विचार। ज्ञान, विवेक, बुद्धि मिले, मिटे अज्ञान अंधार॥ सप्तर्षि, देव, ऋषिगण सारे, तव गुणगान करें। ग...

Dhoop Mantra-Nath Panthi-Agni–Dhoop Samarpan Stotra/धूप मंत्र

नाथ संप्रदाय का अग्नि–धूप समर्पण स्तोत्र नाथ संप्रदाय का अग्नि–धूप समर्पण स्तोत्र... "धूप मंत्र" एक अत्यंत पवित्र, शक्तिशाली और परंपरागत नाथ संप्रदाय का अग्नि–धूप समर्पण स्तोत्र है। यह मंत्र धूप ध्यान, होम, और गुरु आराधना के समय बोला जाता है, जिससे वातावरण शुद्ध हो, देवताओं का आह्वान हो, और साधना सफल हो। || धूप मंत्र – भावार्थ सहित || ॐ नमो आदेश। गुरुजीं को आदेश। ॐ गुरुजी। भावार्थ: यह मंत्र नाथ परंपरा का अभिवादन है। "आदेश" का अर्थ है – ईश्वर में तुम्हें नमस्कार है। पानी का बुंद, पवन का थंभ, जहाँ उपजा कल्पवृक्ष का कंध। भावार्थ: जल की बूँद और वायु के स्तंभ से जहाँ दिव्य कल्पवृक्ष प्रकट हुआ। कल्पवृक्ष की छाया, जिसमें गुग्गुल धूप उपाया। भावार्थ: उस कल्पवृक्ष की छाया में शुभ धूप प्रज्वलित की जाती है। जहाँ हुआ धूप का प्रकाश, जौ, तिल, घृत लेके किया वास। भावार्थ: धूप, घृत (घी), जौ, तिल आदि समर्पण से दिव्यता प्रकट होती है। धुनि धूपाया, अग्नि चढ़ाया, सिद्ध का मारक विरले पाया। भावार्थ: धूप से धूनी दी गई, अग्नि में चढ़ाया गया — सि...

Gorakshanath-Aarti/Guru Gorakshanath-Sandhya Aarti-गुरु गोरक्षनाथ जी कीआरती

श्री गुरु गोरक्षनाथ जी की संध्या आरती श्री गुरु गोरक्षनाथ जी की संध्या आरती.. गुरु गोरक्षनाथ जी की आरती (नाथ संप्रदाय परंपरा में की जाने वाली आरती) नाथ योगियों द्वारा भक्तिभाव से की जाती है। यह आरती उनकी योगशक्ति, करुणा, और साधक पर कृपा का गुणगान है। आरती: श्री गुरु गोरक्षनाथ जी की आरती कीजै गोरख जी की, योगीश्वर भगवान। नाथ पंथ के दीपक तुम हो, करो कृपा भगवान॥ गोरखनाथ जटा धारी, मृग चर्म शरीर। भस्म रमायो अंग में, गह्यो ध्यान गंभीर॥ आरती कीजै गोरख जी की... सिद्ध चरणों के तू स्वामी, योग तंत्र के ज्ञानी। भूत-प्रेत नशावै तेरे, जपे नाम जो प्राणी॥ आरती कीजै गोरख जी की... गुरु मच्छिन्द्रनाथ के प्यारे, शिष्य महान कहाए। सिद्ध गुफा में ध्यान लगायो, लोक कल्याण बढाए॥ आरती कीजै गोरख जी की... गोरख पर्वत तप किया, तप से त्रिभुवन डोले। नाथ गोरख कृपा करो अब, शरण पड़े हम भोले॥ आरती कीजै गोरख जी की... कंठ धारण सर्प सुशोभित, हाथ में योगदण्डा। सच्चा तत्त्व बतावन वाला, नाथों में तू नन्दा॥ आरती कीजै गोरख जी की... भक्तजन जो नाम पुकारें, संकट तिनके टारो। गोरखनाथ प...

Shiva Gorakh Dhyan/Guru Gorakhnath/शिव गोरख ध्यान

शिव गोरख ध्यान मंत्रात्मक रूप में शिव गोरख ध्यान मंत्रात्मक रूप में... "शिव गोरख ध्यान" एक अत्यंत पावन साधना है जिसमें भगवान शिव (आदि योगी) और गुरु गोरखनाथ (नाथ संप्रदाय के प्रमुख योगी) का एक साथ ध्यान किया जाता है। यह ध्यान योगियों, साधकों और नाथ पंथ के अनुयायियों के लिए विशेष रूप से कल्याणकारी माना जाता है। ॥ शिव गोरख ध्यान ॥ (भगवान शिव और गुरु गोरखनाथ का संयुक्त ध्यान) ॥ ध्यानम् ॥ वन्दे शिवं गोरखनाथं, योगमूर्ति द्विभुजधारिणम्। त्रिशूल डमरु कर-धृतं, चन्द्रार्धशेखरं शाश्वतम्॥ गौरवर्णं, जटाधारीं, वसुन्धरा पर विराजितम्। गोरक्षं भक्तवत्सलं, योगमार्गप्रदर्शकम्॥ नेत्रत्रयं शिवस्य शोभितं, योगाग्नि ज्वलदन्तरम्। गोरखनाथं गुरुश्रेष्ठं, ध्यायामि चित्तनिर्मलम्॥ शिवं शान्तं सदानन्दं, नाथं ज्ञानरूपिणम्। गोरक्षं सिद्धयोगीन्द्रं, चित्तरूपं नमाम्यहम्॥ ध्यान का भावार्थ (संक्षेप में) भगवान शिव योग के मूल स्रोत हैं। वे त्रिनेत्रधारी, त्रिशूलधारी, करुणामयी हैं। गुरु गोरखनाथ शिव के कृपापात्र शिष्य हैं जिन्होंने हठयोग, सिद्धयोग, और आत्मज्ञान का प्रच...

Goraksh Kavach - Sanskrt Paath-Dhyaan evan jaap vidhi/श्री गोरक्ष कवच

गुरु गोरखनाथ जी द्वारा प्रदत्त रक्षात्मक स्तोत्र श्री गोरक्ष कवच (संस्कृत पाठ सहित)... गोरक्ष कवच नाथ योग परंपरा के अद्भुत रचनाओं में से एक है। यह एक रक्षात्मक स्तोत्र (कवच) है जो शरीर, मन और आत्मा की रक्षा करता है। यह विशेष रूप से उन साधकों द्वारा पढ़ा जाता है जो योग, तंत्र, साधना, और गुरु-भक्ति मार्ग पर चलते हैं। (गुरु गोरखनाथ जी द्वारा प्रदत्त रक्षात्मक स्तोत्र) ॥ श्रीगोरक्ष कवचम् ॥ ॐ अस्य श्रीगोरक्षकवचमन्त्रस्य शिवऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीगोरक्षनाथो देवता, योगिनी बीजम्, हंसः शक्तिः, गुरुरिति कीलकम्। श्रीगोरक्षनाथप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥ स्तोत्र प्रारंभ: ॐ गोरक्षो मे शिरः पातु, ललाटं गुरुनायकः। नेत्रे मम रथस्थश्च, कर्णौ योगीश्वरोऽवतु॥ 1 ॥ नासिकां नाथनाथश्च, वदनं विश्वरक्षकः। जिव्हां मे सिद्धनाथश्च, दन्तान् मे योगराट् सदा॥ 2 ॥ कण्ठं मे कण्ठमालश्च, स्कन्धौ सिद्धेश्वरोऽवतु। भुजौ बलार्करूपश्च, हस्तौ मे पातु बल्यभूः॥ 3 ॥ हृदयं मे सदा रक्षेद् ध्यानयोगपरायणः। नाभिं पातु महामायावी, पृष्ठं योगविभूतिधृक्॥ 4 ॥ कटिं रक्षतु योगात्मा, ग...

Machhindranath Chalisa/Shri Guru Machhindranath Chalisa/श्री गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा

श्री गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा श्री गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा... भगवान गुरु मच्छिन्द्रनाथ जी को समर्पित भक्तिपूर्ण "गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा" का एक सुंदर रूपांतरण है। यह चालीसा नाथ संप्रदाय के महान गुरु श्री मच्छिन्द्रनाथ जी के योग, ज्ञान और भक्ति से प्रेरित है। गुरु मच्छिन्द्रनाथ जी का परिचय: विषय विवरण   वास्तविक नाम   मीननाथ / मच्छेन्द्रनाथ / मत्स्येन्द्रनाथ   सम्मानित नाम   श्री गुरु मच्छिन्द्रनाथ जी महाराज   परंपरा   नाथ संप्रदाय (योगियों की परंपरा)   शिष्य   श्री गोरखनाथ जी   गुरु   स्वयं भगवान शिव (आदि योगी)   विशेष योगदान   हठयोग का प्रवर्तन, कुंडलिनी जागरण का ज्ञान, तांत्रिक साधना का प्रचार   भाषाएं/ग्रंथ   संस्कृत, प्राकृत, नाथ साहित्य में उल्लेख   प्रमुख स्थान   नेपाल (पाटन), काठमांडू, भारत के कई हिस्से || श्री गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा || (नाथ संप्रदा...

Shri Gorakhnath Chalisa/Guru gorakshanaath jee mahaaraaj/Chalisa

श्री गोरखनाथ चालीसा श्री गोरखनाथ चालीसा... श्री गोरखनाथ चालीसा एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है जो महान योगी और संत श्री गोरखनाथ जी को समर्पित है। यह चालीसा 40 चौपाइयों में उनकी महिमा, योगशक्ति, और भक्तों के प्रति उनकी कृपा को वर्णित करती है। || श्री गोरखनाथ चालीसा || (गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज को समर्पित) ॥ दोहा ॥ जय गुरुदेव गोरखनाथ, पार करो भव पार। नाम तुम्हारा जपत ही, कटे जन्म संभार॥ ॥ चौपाई ॥ जय गोरखनाथ अति बलवाना। योगीश्वर महा भगवाना॥ गोरख रूप अनूप तुम्हारा। योगियों में श्रेष्ठ तुम्हारा॥ मात-पिता का तुमने त्यागा। तप से मन को किया सुहागा॥ सिद्धासन पर ध्यान लगाए। ब्रह्मज्ञान सब को बतलाए॥ अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। चमत्कार दिखलाए नाता॥ योग मार्ग का पाठ पढ़ाया। भवसागर से पार लगाया॥ बटुक रूप धर शिव अवतारी। गोरख नाम भयो सुखकारी॥ नाथ पंथ की नींव जमाई। हर दिल में गोरख समाई॥ ध्यान लगाकर ध्यान सिखाया। पंचतत्व पर विजयी पाया॥ हठ योग का ज्ञान बताया। शिष्य मछंदर को समझाया॥ गुरु गोरख का यश महान। जिनसे चला योगी विधान॥ राम-नाम का करें प्रचार। मन को दे ...

Ravidas Chalisa/रविदास चालीस/Shri/Ravidas/Chalisa

श्री रविदास चालीसा श्री रविदास चालीसा... श्री रविदास चालीसा (Shri Ravidas Chalisa) संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास जी की महिमा का वर्णन करने वाला एक चालीस चौपाइयों का स्तोत्र है। रविदास चालीसा का पाठ करने से मन को शांति, आत्मा को शुद्धि और जीवन को दिव्यता प्राप्त होती है। यह चालीसा न केवल संत रविदास जी की महिमा का गान करती है, बल्कि उनके द्वारा दिए गए सामाजिक, आध्यात्मिक और नैतिक उपदेशों को भी उजागर करती है। || श्री रविदास चालीसा || ॥ दोहा ॥ बन्दौं वीणा पाणि को, देहु आय मोहिं ज्ञान। पाय बुद्धि रविदास को, करौं चरित्र बखान॥ मातु की महिमा अमित है, लिखि न सकत है दास। ताते आयों शरण में, पुरवहु जन की आस॥ ॥ चौपाई ॥ जै होवै रविदास तुम्हारी, कृपा करहु हरिजन हितकारी। राहू भक्त तुम्हारे ताता, कर्मा नाम तुम्हारी माता। काशी ढिंग माडुर स्थाना, वर्ण अछूत करत गुजराना। द्वादश वर्ष उम्र जब आई, तुम्हरे मन हरि भक्ति समाई। रामानन्द के शिष्य कहाये, पाय ज्ञान निज नाम बढ़ाये। शास्त्र तर्क काशी में कीन्हों, ज्ञानिन को उपदेश है दीन्हों। गंग मातु के भक्त अपारा, कौड़ी ...