सदाशिवाष्टकम् का संपूर्ण संस्कृत पाठ...
"सदाशिवाष्टकम्" जो पतञ्जलि मुनि द्वारा रचित माना जाता है, यह अत्यंत सुंदर और भक्तिपूर्ण स्तुति है और हालास्यमाहात्म्य (मंदिर या क्षेत्र महिमा) से जुड़ा हुआ है। यह भगवान सदाशिव (शिव के श्रेष्ठतम स्वरूप) की दिव्यता, शक्ति, सौंदर्य और कृपा को समर्पित है।
हालास्यमाहात्म्ये पतञ्जलिकृतं सदाशिवाष्टकम्
(हालास्य = मदुरै के श्री मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर से संबद्ध)
॥ सदाशिवाष्टकम् ॥
(पतञ्जलि मुनि कृतम्)
सुवर्णपद्मिनी-तटान्त-दिव्य-हर्म्य-वासिने।
सुपर्णवाहन-प्रियाय सूर्यकोटि-तेजसे॥
अपर्णया विहारिणे फणाधरेन्द्र-धारिणे।
सदा नमः शिवाय ते सदाशिवाय शम्भवे॥
सतुङ्गभङ्ग-जह्नुजा-सुधांशु-खण्ड-मौलये।
पतङ्ग-पङ्कजासुहृत्-कृपीट-योनिचक्षुषे॥
भुजङ्गराज-मण्डलाय पुण्यशालि-बन्धवे।
सदा नमः शिवाय ते सदाशिवाय शम्भवे॥
चतुर्मुखाननारविन्द-वेदगीत-भूतये।
चतुर्भुजानुजा-शरीर-शोभमान-मूर्तये॥
चतुर्विधार्थदान-शौण्ड-ताण्डव-स्वरूपिणे।
सदा नमः शिवाय ते सदाशिवाय शम्भवे॥
शरन्निशाकरप्रकाश-मन्दहास-मञ्जुला।
धरप्रवाल-भासमान-वक्त्रमण्डल-श्रिये॥
करस्पुरत्कपाल-मुक्त-रक्त-विष्णुपालिने।
सदा नमः शिवाय ते सदाशिवाय शम्भवे॥
सहस्र-पुण्डरीक-पूजनैक-शून्यदर्शनात्।
सहस्र-नेत्रकल्पितार्चनाच्युताय भक्तितः॥
सहस्र-भानु-मण्डल-प्रकाश-चक्रदायिने।
सदा नमः शिवाय ते सदाशिवाय शम्भवे॥
रसारथाय रम्यपत्र-भृद्रथाङ्ग-पाणये।
रसाधरेन्द्र-चापशिञ्जिनीकृतानिलाशिने॥
स्वसारथीकृताजनुन्न-वेदरूप-वाजिने।
सदा नमः शिवाय ते सदाशिवाय शम्भवे॥
अति प्रगल्भ-वीरभद्र-सिंहनाद-गर्जित।
श्रुतिप्रभीत-दक्ष-याग-भोगिनाक-सद्मनाम्॥
गतिप्रदाय गर्जिताखिल-प्रपञ्च-साक्षिणे।
सदा नमः शिवाय ते सदाशिवाय शम्भवे॥
मृकण्डुसूनु-रक्षणावधूत-दण्ड-पाणये।
सुगन्धमण्डल-स्फुरत्प्रभाजितामृतांशवे॥
अखण्डभोग-सम्पदर्थ-लोकभावितात्मने।
सदा नमः शिवाय ते सदाशिवाय शम्भवे॥
मधुरिपु-विधि-शक्र-मुख्य-देवैरपि।
नियमार्चित-पादपङ्कजाय॥
कनकगिरि-शरासनाय तुभ्यं।
रजतसभापतये नमः शिवाय॥
हालास्यनाथाय महेश्वराय।
हालाहलालंकृत-कन्धराय॥
मीनेक्षणायाः पतये शिवाय।
नमो नमः सुन्दर ताण्डवाय॥
॥ इति श्री हालास्यमाहात्म्ये पतञ्जलिकृतमिदं सदाशिवाष्टकम् ॥
संक्षिप्त व्याख्या (मुख्य भावार्थ):
उपयोग और लाभ:
भक्त का निवेदन है कि_
— हे शिव! मेरा मन सदा आपके पंचाक्षरी मंत्र का जप करता रहे।
— मेरे अपराध क्षमा हो जाएँ।
— मुझे आपके चरणों की भक्ति प्राप्त हो।
सदाशिव अष्टकम् का उपयोग कब करें?
शिवरात्रि, सोमवार, श्रावण मास, या नित्य शिव पूजन में, ध्यान एवं जाप से पहले आरती या ध्यान के उपरांत इस स्तुति का पाठ अत्यंत फलदायी होता है।
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