श्री बृहस्पति चालीसा...
"श्री बृहस्पति चालीसा" एक श्रद्धापूर्ण स्तुति है, जो देवगुरु बृहस्पति को समर्पित है — वे जो नवग्रहों में ज्ञान, नीति, धर्म और विवेक के प्रतीक माने जाते हैं। यह चालीसा विशेष रूप से उन श्रद्धालुओं के लिए है जो जीवन में बुद्धि, वाणी की मधुरता, व्यापार में सफलता, संतान और विवाह संबंधी समस्याओं से मुक्ति, और संतुलित व धर्मयुक्त जीवन की कामना करते हैं।
देवगुरु बृहस्पति का नित्य स्मरण और यह चालीसा पाठ शिक्षा, निर्णय क्षमता, आध्यात्मिक उन्नति, वाणी की शक्ति, और गुरु ग्रह की कृपा को प्राप्त करने का एक प्रभावशाली उपाय है।
|| श्री बृहस्पति चालीसा ||
(देवगुरु बृहस्पति को समर्पित)
॥ दोहा ॥
नमन करूँ गुरुवर चरण, बुद्धि, ज्ञान के धाम।
दीन-दुखी की सुधि लो सदा, कर दो सबके काम॥
॥ चौपाई ॥
जय बृहस्पति ज्ञान के दाता। सुर मुनिजन के हो सुखदाता॥
पीताम्बर तन तेज अपारा। रत्न जटित मुकुट सिर प्यारा॥
हाथ कमंडल, माला धारे। करुणा दृष्टि सब पर वारे॥
बुद्धि, विवेक, धर्म के रक्षक। जीवन मार्गदर्शक सच्चक॥
शील, शांति, सद्भाव बढावे। जो भी नाम तुम्हारा गावें॥
वाणी मधुर करे मन मीठा। तुमसे उज्ज्वल हो जीवन लीखा॥
जो व्यापारी करे पयारा। दे व्यापार सदा सुखकारा॥
विद्यार्थी को दे बुद्धि भारी। पावे वह सदा उन्नति न्यारी॥
गुरु बृहस्पति दया के सागर। मिटा दो संशय और अंधागर॥
कर्म-क्लेश जब जीवन घेरें। तुम हो तारक दुःख सब टेरें॥
संतानहीन करे जो सेवा। पावें सन्तान का सुख मेवा॥
विवाह योग करें जो बाधा। कृपा करो मिटे सब व्याधा॥
पीला पुष्प, चना अरु केला। प्रिय बृहस्पति को लगे अलबेला॥
गुरुवार व्रत जो नर साधे। दुर्भाग्य दूर सदा हो वाधे॥
वेद-पुराणों में तुम गाए। देवों के गुरु कहाए॥
नवग्रहों में श्रेष्ठ तुम ही। शुभ हो दृष्टि जब तुम समी॥
संतों, ऋषियों के प्रिय सच्चे। ध्यान तुम्हारा करे जो अच्छे॥
भाग्य विधाता, जीवन धारा। करते हो भव से उबारा॥
स्वर्ण, भूमि, ज्ञान का कारक। ह्रदय तुम्हारा निर्मल-शारक॥
यश-कीर्ति और धर्म बढ़ाते। अशुभ ग्रहों को भी झुकवाते॥
गुरु ज्ञान दे दीप जलाते। अविवेकी को भी सच्चा बनाते॥
पीत वस्त्र में शोभा न्यारी। भक्तों पर दया तुम्हारी॥
जो भी करे तुम्हारा ध्यान। पावें जीवन में सम्मान॥
निर्बल को तुम बल दे जाते। जीवन पथ सरल बनाते॥
शिष्य तुम्हारे सद्गति पाते। तुम जो उचित मार्ग दिखलाते॥
अशुभ योग जब राह में आए। तुम कृपा से सब हर जाए॥
धर्म, नीति का हो विस्तार। जब हो भक्तों को तुम्हारा प्यार॥
गुरु बृहस्पति तारणहारा। भक्तों के तुम जीवन सारा॥
पीत जप-माल से जब जप करें। सारे विघ्न विपत्ति हरण करें॥
मन को शांत, विचार सुधारे। सद्बुद्धि तुम सबको वारे॥
बालक पढ़े, समझ बढ़ाएं। गुरु चरणों में मन लगाएं॥
जो भी करे सच्चे मन व्रत। हरें सब दोष, मिले सत्कृत॥
रोग, शोक, दरिद्र मिटाएं। जो भक्ति भाव से मन लाएं॥
गुरु की शरण जब कोई जाए। बृहस्पति रक्षा स्वयं बनाए॥
न्यायप्रिय हो, धर्म रक्षक। भक्तों के तुम पुण्य-संचक॥
दीप ज्ञान का तुम जलाओ। अज्ञान तम को दूर भगाओ॥
शुभ फल पावें हर प्राणी। गुरु कृपा हो जब भी जानी॥
श्री गुरु को जो प्रणाम करे। बृहस्पति चरणों में ध्यान धरें॥
यह चालीसा जो नित गावे। बृहस्पति कृपा शीश नवावे॥
अंत में कर जोर विनती। हो मेरे जीवन में नीति-विनती॥
॥ दोहा ॥
गुरु कृपा जिस पर हो, उसे ना कष्ट सताय।
बृहस्पति प्रभु की भक्ति से, जीवन सुखमय हो जाय॥
बृहस्पति चालीसा करने के लाभ:
शास्त्रों में बताया गया है कि बृहस्पति चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं –
व्रत/पूजन की विधि (संक्षेप में):
पाठ का सर्वश्रेष्ठ समय:
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