Skip to main content

Shukra-Chalisa-Shri-Shukra-Dev/श्री शुक्र चालीसा

श्री शुक्र चालीसा — परिचय, पाठ-विधि और लाभ

श्री शुक्र देव चालीसा...

श्री शुक्र चालीसा, श्री शुक्र देव को समर्पित एक श्रद्धापूर्ण भक्ति स्तुति है। यह चालीसा विशेष रूप से उन भक्तों के लिए है जो जीवन में सौंदर्य, प्रेम, कला, वैभव और सुख-समृद्धि की प्राप्ति की कामना करते हैं।

श्री शुक्र देव — संक्षेप में

श्री शुक्र देव को धन, वैभव, सौंदर्य, प्रेम, कला, और संगीत का स्वामी माना जाता है। वे रचनात्मकता एवं आकर्षण के ग्रहणकर्ता हैं और जिन पर इनका अनुकूल प्रभाव होता है वे जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार से लाभान्वित होते हैं।

शुक्र ग्रह का ज्योतिषीय महत्व

कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति से व्यक्ति की रूचि, सौंदर्यबोध, प्रेम संबंध, आर्थिक स्थिति और कलात्मक प्रतिभा प्रभावित होती है। शुक्र का सकारात्मक प्रभाव रचनात्मकता, सफलता और आकर्षण को बढ़ाता है।

॥ शुक्र चालीसा ॥

शुक्र ग्रह के अधिपति देवता — श्री शुक्र देव को समर्पित भक्ति स्तुति

॥दोहा॥

श्री गणपति गुरु गउ़रि, शंकर हनुमत कीन्ह।
बिनवउं शुभ फल देन हरि, मुद मंगल दीन॥

॥चौपाई॥

जयति जयति शुक्र देव दयाला।
करत सदा जनप्रतिपाला॥

श्वेताम्बर, श्वेत वारन, शोभित।
मुख मंद, चंदन हिय लोभित॥

सुन्दर रत्नजटित आभूषण।
प्रियहिं मधुर, शीतल सुवासण॥

सप्त भुज, सोभा निधि लावण्य।
करत सदा जन, मंगल कान्य॥

मंगलमय, सुख सदा सवारथ।
दीनदयालु, कृपा निधि पारथ॥

शुभ्र स्वच्छ, गंगा जल जैसा।
दर्शन से, हरषाय मनैसा॥

त्रिभुवन, महा मंगल कारी।
दीनन हित, कृपा निधि सारी॥

देव दानव, ऋषि मुनि भक्तन।
कष्ट मिटावन, भंजन जगतन॥

मोहबारी, मनहर हियरा।
सर्व विधि सुख, सौख्य फुलारा॥

करत क्रोध, चपल भुज धारी।
कष्ट निवारण, संत दुखारी॥

शुभ्र वर्ण, तनु मंद सुहाना।
कष्ट मिटावन, हर्षित नाना॥

दुष्ट हरण, सुजनन हितकारी।
सर्व बाधा, निवारण न्यारी॥

सुर पतिहिं, प्रभु कृपा विलासिन।
कष्ट निवारण, शुभ्र सुवासिन॥

वेद पुरान, पठत जन स्वामी।
मनहरण, मोहबारी कामी॥

सप्त भुज, रत्नजटित माला।
कष्ट निवारण, शुभ फलशाला॥

सुख रक्षक, सर्वसुख दाता।
सर्व कामना, फल दाता॥

मानव कृत, पाप हरे प्रभु।
सर्व बाधा, निवारण रघु॥

रोग निवारण, दुख हरणकर।
सर्व विधि, शुभ फल देनेकर॥

नमन सकल, सुर नर मुनि करते।
व्रत उपासक, दुख हरण करते॥

शरणागत, कृपा निधि सोइ।
जन रक्षक, मोहे दुख होई॥

शुद्ध भाव, से जो नित गावै।
सर्व सुख, परम पद पावै॥

वृन्दावन में, मंदिर निर्मित।
जहां शुद्ध भक्तन, सदा शरणागत॥

संत जनन के, कष्ट मिटावत।
भवबंधन से, सहज छुड़ावत॥

सकल कामना, पूर्ण करावत।
मोहभंग, भवसागर तरावत॥

जयति जयति, कृपानिधान।
शुक्र देव, श्री विश्व विद्धान॥

प्रणवउं, नाथ सकल गुण सागर।
विविध विघ्न हरन, सुखदायक॥

सुर मुनि जनन, अति प्रिय स्वामी।
शुभ्र वर्ण, रूप मनहारी॥

जय जय जय, श्री शुक्र दयाला।
करहुं कृपा, भव बंधन ताला॥

ध्यान धरत, जन होउं सुखारी।
कृपा दृष्टि, शांति हितकारी॥

अधम कायर, सुबुद्धि सुधारो।
मोह निवारण, कष्ट निवारो॥

लक्ष्मीपति, शुभ फल दाता।
संतजनन, दुख भंजन राता॥

जय जय जय, कृपा निधि शुक्र।
करहुं कृपा, हरहुं सब दु:ख॥

प्रणवउं नाथ, सकल गुण सागर।
विविध विघ्न हरन, सुखदायक॥

रूप तेज बल, संपन्न सदा।
शांति दायक, जन सुख दाता॥

त्रिभुवन में, मंगल करतू।
सर्व बाधा, हरता शुकृ॥

मानव कृत, पाप हरे प्रभु।
सर्व बाधा, निवारण रघु॥

रोग निवारण, दुख हरणकर।
सर्व विधि, शुभ फल देनेकर॥

प्रणवउं नाथ, सकल गुण सागर।
विविध विघ्न हरन, सुखदायक॥

ध्यान धरत, जन होउं सुखारी।
कृपा दृष्टि, शांति हितकारी॥

जय जय जय, कृपा निधि शुक्र।
करहुं कृपा, हरहुं सब दु:ख॥

॥दोहा॥

नमो नमो श्री शुक्र सुहावे।
सर्व बाधा, कष्ट मिटावे॥

यह चालीसा, जो नित गावै।
सुख संपत्ति, परम पद पावै॥

|| इति संपूर्णंम् ||

श्री शुक्र चालीसा — लाभ, पूजा उपाय और मंत्र

नियमित भक्ति और उचित पूजा-विधि से शुक्र ग्रह के प्रभाव संतुलित होते हैं। नीचे श्रवण/पाठ हेतु सभी महत्वपूर्ण मार्गदर्शक दिए गए हैं।

शुक्र चालीसा पढ़ने के लाभ

  • शुक्र दोष (यदि कुंडली में शुक्र अशुभ हो) को शांत करने में सहायक।
  • सुख-शांति, वैभव और आर्थिक समृद्धि की संभावनाएँ बढ़ती हैं।
  • सौंदर्य, प्रेम और कलात्मक क्षमता में वृद्धि होती है।
  • संबंधों में सामंजस्य और आकर्षण बढ़ता है।
  • नियमित भक्ति से मानसिक शांति, आत्मविश्वास और संपूर्ण कल्याण आता है।

पाठ के उपाय और सुझाव

  1. साफ और शुद्ध स्थान पर प्रतिदिन सूर्योदय के बाद या शाम को शांत समय में पाठ करें।
  2. यदि संभव हो तो शुक्रवार को विशेष पाठ एवं व्रत करने से अधिक फल माना जाता है।
  3. भक्ति के साथ सच्चे हृदय से पाठ करें — शुद्ध भाव सर्वोपरि है।
  4. चालीसा के साथ गायत्री/श्लोक या शुक्र से संबंधित बीज/गायत्री मंत्र का जप भी लाभदायी होता है।
  5. दान (जैसे वस्त्र, दीप, अन्नदान) करने से पुण्यफल बढ़ता है।

शुक्र देव के प्रमुख मंत्र

बीज मंत्र

ॐ द्राँ द्रीँ द्रौं सः शुक्राय नमः।

गायत्री मंत्र

ॐ भृगु पुत्राय विद्महे धीराय धीमहि। तन्नः शुक्रः प्रचोदयात्।

शांति मंत्र

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

शुभ अवसर

  • शुक्रवार — शुक्र पूजा का सर्वोत्तम दिन।
  • विवाह के समय — वैवाहिक जीवन में सौहार्द हेतु।
  • कला/संगीत/रचनात्मक कार्य आरम्भ करते समय।
  • धन-समृद्धि के उद्देश्य से विशेष पाठ।
  • कुंडली में शुक्र दोष निवारण के समय नियमित पाठ।

नोट एवं सुझाव

यदि आपको ग्रह दोष के लक्षण महसूस हों तो संकल्पबद्ध होकर नियमित पाठ करें और आवश्यक हो तो किसी अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श लें। पूजा में श्रद्धा एवं नियम का ही सर्वोत्तम फल होता है।

निष्कर्ष

श्री शुक्र चालीसा का नियमित पाठ, श्रद्धा और सही उपायों के साथ, शुक्र दोष को शांत कर जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने में समर्थ है। यह ना केवल बाह्य वैभव देता है बल्कि आंतरिक शांति और रचनात्मकता को भी पोषित करता है।

संक्षेप: श्री शुक्र देव — धन, सौंदर्य, प्रेम और कला के स्वामी। श्री शुक्र चालीसा — उनके आशीर्वाद हेतु सरल एवं प्रभावी भक्ति साधन।

"प्यार बाँटिए — हमें फॉलो करें और इस पोस्ट को अपने अपनों के साथ शेयर करें!"
संबंधित पृष्ठ:
  1. 55 चालीसाओं का संग्रह
  2. श्री राहु स्तोत्र
  3. श्री सूर्य चालीसा
  4. श्री मंगल चालीसा
  5. भगवान शिव स्तुति
  6. शिव बिल्वाष्टकम्
  7. किरातरूपाय नमः शिवाय
  8. श्री कालभैरव अष्टकम्
  9. लिंगाष्टकम स्तोत्र
  10. चिन्तामणि षट्पदी स्तोत्र
  11. गणपतितालम्
  12. 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग
  13. राम रक्षा स्तोत्र
  14. श्रीकृष्णाष्टक स्तोत्र
  15. संकटमोचन हनुमानाष्टक

Comments

Popular posts from this blog

Shri Shiv-stuti - नंदी की सवारी नाग अंगीकार धारी।

श्री शिव स्तुति | सरल और प्रभावी स्तुति का पाठ भोले शिव शंकर जी की स्तुति... ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय भगवान शिव स्तुति : भगवान भोलेनाथ भक्तों की प्रार्थना से बहुत जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसी कारण उन्हें 'आशुतोष' भी कहा जाता है। सनातन धर्म में सोमवार का दिन को भगवान शिव को समर्पित है। इसी कारण सोमवार को शिव का महाभिषेक के साथ साथ शिव की उपासना के लिए व्रत भी रखे जाते हैं। अपने परिवार के लिए सुख समृद्धि पाना के लिए सोमवार के दिन शिव स्तुति का जाप करना आपके लिए लाभकारी होगा और स्तुति का सच्चे मन से करने पर भोले भंडारी खुश होकर आशीर्वाद देते है। ॥ शिव स्तुति ॥ ॥ दोहा ॥ श्री गिरिजापति बंदि कर चरण मध्य शिर नाय। कहत गीता राधे तुम मो पर हो सहाय॥ कविता नंदी की सवारी नाग अंगीकार धारी। नित संत सुखकारी नीलकण्ठ त्रिपुरारी हैं॥ गले मुण्डमाला भारी सर सोहै जटाधारी। बाम अंग में बिहारी गिरिजा सुतवारी हैं॥ दानी बड़े भारी शेष शारदा पुकारी। काशीपति मदनारी कर शूल च्रकधारी हैं॥ कला जाकी उजियारी लख ...

jhaankee - झांकी उमा महेश की, आठों पहर किया करूँ।

भगवान शिव की आरती | BHAKTI GYAN भगवान शिव की आरती... ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: भगवान शिव की पूजा के समय मन के भावों को शब्दों में व्यक्त करके भी भगवान आशुतोष को प्रसन्न किया जा सकता है। भगवान शिव की आरती से हम भगवान भोलेनाथ के चरणों में अपने स्तुति रूपी श्रद्धासुमन अर्पित कर उनका कृपा प्रसाद पा सकते हैं। ॥ झांकी ॥ झांकी उमा महेश की, आठों पहर किया करूँ। नैनो के पात्र में सुधा, भर भर के मैं पिया करूँ॥ वाराणसी का वास हो, और न कोई पास हो। गिरजापति के नाम का, सुमिरण भजन किया करूँ॥ झांकी उमा महेश की....... जयति जय महेश हे, जयति जय नन्द केश हे। जयति जय उमेश हे, प्रेम से मै जपा करूँ॥ झांकी उमा महेश की....... अम्बा कही श्रमित न हो, सेवा का भार मुझको दो। जी भर के तुम पिया करो, घोट के मैं दिया करूँ॥ झांकी उमा महेश की....... जी मै तुम्हारी है लगन, खीचते है उधर व्यसन। हरदम चलायमान हे मन, इसका उपाय क्या करूँ॥ झांकी उमा महेश की....... भिक्षा में नाथ दीजिए, सेवा में मै रहा करूँ। बेकल हु नाथ रात दिन चैन...

Sri Shiva\Rudrashtakam\Shri Rudrashtakam Stotram

श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र... !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! भगवान शिव शंकर जी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। यदि भक्त श्रद्धा पूर्वक एक लोटा जल भी अर्पित कर दे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। 'श्री शिव रुद्राष्टकम' अपने आप में अद्भुत स्तुति है। यदि कोई आपको परेशान कर रहा है तो किसी शिव मंदिर या घर में ही कुशा के आसन पर बैठकर लगातार 7 दिनों तक सुबह शाम 'रुद्राष्टकम' स्तुति का पाठ करने से भगवान शिव बड़े से बड़े शत्रुओं का नाश करते हैं और सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। रामायण के अनुसार, मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने रावण जैसे भयंकर शत्रु पर विजय पाने के लिए रामेशवरम में शिवलिंग की स्थापना कर रूद्राष्टकम स्तुति का श्रद्धापूर्वक पाठ किया था और परिणाम स्वरूप शिव की कृपा से रावण का अंत भी हुआ था। ॥ श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र ॥ नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भज...

Mata Chamunda Devi Chalisa - नमस्कार चामुंडा माता, तीनो लोक मई मई विख्याता

चामुण्डा देवी की चालीसा | BHAKTI GYAN चामुण्डा देवी की चालीसा... हिंदू धर्म में मां दुर्गा को शक्ति स्वरूपा माना गया है। भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है, जिनमे से एक चामुण्‍डा देवी मंदिर शक्ति पीठ भी है। चामुण्डा देवी का मंदिर मुख्यता माता काली को समर्पित है, जो कि शक्ति और संहार की देवी है। पुराणों के अनुसार धरती पर जब कोई संकट आया है तब-तब माता ने दानवो का संहार किया है। असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ा। श्री चामुंडा देवी मंदिर को चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है, यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की धर्मशाला तहसील में पालमपुर शहर से 19 K.M दूर स्थित है। जो माता दुर्गा के एक रूप श्री चामुंडा देवी को समर्पित है। || चालीसा || ।। दोहा ।। नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड, दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुस्त को दांड्ड़ । मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत, मेरी भी बढ़ा हरो हो जो कर्म पुनीत ।। ।। चौपाई ।। नमस्कार चामुंडा माता, तीनो लोक मई मई विख्याता । हिमाल्या मई पवितरा धाम है, महाशक्ति तुमको प्रडम है ।।1।। ...

Dwadash Jyotirlinga - सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। द्वादश ज्योतिर्लिंग... हिन्दू धर्म में यह माना जाता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है। श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम्॥१॥ परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमाशंकरम्। सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥२॥ वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारम् घुश्मेशं च शिवालये॥३॥ एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥४॥ Related Pages: श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् चिन्तामणि षट्पदी स्तोत्र गणपतितालम् श्री कालभैरव अष्टकम् अंगना पधारो महारानी मोरी शारदा भवानी देवी भजन- इंद्राक्षी स्तोत्रम् श्री शिव प्रातः स्मरणस्तोत्रम् 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग राम रक्षा स्तोत्र संकटमोचन हनुमानाष्टक संस्कृत में मारुति स्तो...

Lingashtakam\Shiv\lingashtakam stotram-लिङ्गाष्टकम्

श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र श्री शिव लिंगाष्टकम स्तोत्र... !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! लिंगाष्टकम में शिवलिंग की स्तुति बहुत अद्बुध एवं सूंदर ढंग से की गयी है। सुगंध से सुशोभित, शिव लिंग बुद्धि में वृद्धि करता है। चंदन और कुमकुम के लेप से ढका होता है और मालाओं से सुशोभित होता है। इसमें उपासकों के पिछले कर्मों को नष्ट करने की शक्ति है। इसका पाठ करने वाला व्यक्ति हर समय शांति से परिपूर्ण रहता है और साधक के जन्म और पुनर्जन्म के चक्र के कारण होने वाले किसी भी दुख को भी नष्ट कर देता है। ॥ लिंगाष्टकम स्तोत्र ॥ ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् । जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥ देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् । रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥ सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् । सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥ कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् । दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्ग...

Shiva Pratah Smaran Stotra/shiv praatah smaran stotr arth sahit

शिव प्रातः स्मरणस्तोत्रम् श्री शिव प्रातः स्मरणस्तोत्रम्... ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: | ॐ नमः शिवाय: शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र : सुबह की जाने वाली, भगवान शिव की स्तुति, प्रातः स्मरण अर्थात सुबह किया जाने वाला ईश्वर का स्मरण है। ये एक छोटासा तीन श्लोकों का शिव स्तोत्र है, जो तीन श्लोकों की भगवान् शिव की स्तुति है। श्री शिव प्रातः स्मरणस्तोत्रम् ॥ ॐ नमः शिवाय ॥ प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं गंगाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् । खट्वांगशुलवरदाभयहस्तमीशं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥1॥ प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम् । विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोSभिरामं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥2॥ प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम् । नामादिभेदरहितं षड्भावशून्यं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥3॥ प्रातः समुत्थाय शिवं विचिन्त्य श्लोकत्रयं येSनुदिनं पठन्ति । ते दुःखजातं बहुजन्मसंचितं हित्वा पदं यान्ति तदेव शम्भो: ॥ Related Pages: 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग रावण द्वारा रचित शिव तांडव ...