श्री महालक्ष्मी अष्टकम् — संक्षिप्त परिचय...
श्री महालक्ष्मी अष्टकम् एक अत्यंत पवित्र तथा लोकप्रिय स्तोत्र है जो माँ लक्ष्मी की महिमा का संक्षेप-स्वरूप रूपांतरण है। परंपरा में इसे आदि शंकराचार्य से जुड़ा माना जाता है और यह आठ श्लोकों में देवी के विविध स्वरूपों, गुणों और करुणा का सुंदर वर्णन करता है। यह स्तोत्र न केवल भौतिक समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है बल्कि अध्यात्मिक शांति, मनोबल और सौभाग्य की प्राप्ति का भी मार्ग दिखाता है।
महत्व और विशेषताएँ:
- माँ लक्ष्मी के गुणों — वैभव, वैभवप्रदता, बुद्धि और भुक्ति-मुक्ति प्रदायक स्वरूप — का संक्षिप्त परन्तु प्रभावशाली विवरण।
- अष्टकम् होने के कारण इसे स्मरण करना सरल और प्रतिदिन पाठ के लिए सुविधाजनक है।
- श्रद्धा और भक्ति के साथ इसका नियमित पाठ घर-परिवार में सुख, शांति और आर्थिक स्थिरता लाने में सहायक माना गया है।
॥ श्री महालक्ष्मी अष्टकम् ॥
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि ! नमोस्तुते॥
नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुरभयंकरी।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि ! नमोस्तुते॥
सर्वज्ञे सर्ववर्दे सर्वदुष्टभयंकरी।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि ! नमोस्तुते॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि ! नमोस्तुते॥
आध्यन्तरहिते देवि ! आध्याशक्तिमहेश्वरी।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि ! नमोस्तुते॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौढे महाशक्ति महोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि ! नमोस्तुते॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि ! नमोस्तुते॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि ! नमोस्तुते॥
पाठ का समय व विधि:
इसे प्रातःकाल स्नानादि के पश्चात्, स्वच्छ स्थान पर बैठकर श्रद्धा से पाठ करना श्रेष्ठ है। शुक्रवार और दीपावली पर इसका पाठ विशेष फलदायी माना गया है। कमल या श्वेत पुष्प, धूप-दीप आदि अर्पित करके पाठ करने से देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
फायदे (फलश्रुति):
ग्रंथों और लोकपरम्परा के अनुसार, श्रद्धा-पूर्वक पाठ करने पर अल्प-काल में ही आत्मिक और भौतिक दोनों प्रकार के लाभ अनुभव होते हैं — धनस्य वर्धन, सौभाग्य की वृद्धि, व्यापार-व्यवसाय में स्थिरता, और जीवन में समग्र शांति। साथ ही यह मनोविकारों और भय को दूर करने में भी सहायक माना जाता है।
कब और कैसे पढ़ें?
- श्रेष्ठ दिन: शुक्रवार, लक्ष्मीपूजा या दीपावली के दिन इसका विशेष महत्व है।
- समय: प्रातःकाल सवेरे या संध्या के समय आरती-पूजा के बाद नियमित पाठ सर्वोत्तम माना जाता है।
- विधि: साफ-सुथरे स्थान पर प्रतिदिन 8-गुना (एक-एक श्लोक) या पूरा अष्टकम् मनोभाव से पढ़ें; यदि संभव हो तो दीप और धूप-अगर्वल का साधारण समर्पण करें।
श्रेष्ठ समय:
शुक्रवार को यह पाठ विशेष रूप से शुभ माना जाता है। दीपावली की रात्रि या किसी भी शुक्रवार की सुबह/रात्रि में पाठ करने से विशेष लाभ होता है। प्रतिदिन प्रातः या संध्या में भी किया जा सकता है।
अनुशंसित अतिरिक्त क्रियाएँ:
- यदि संभव हो तो पाठ के दौरान शांत और एकाग्र स्थान चुनें।
- सप्ताह में या महीने में नियमित रूप से पाठ करने से फल स्थायी होता है।
- यदि आप चाहते हैं तो अंत में छोटा सा द्वादशाक्षर या लक्ष्मी-बहुल मंत्र जपे जा सकते हैं।
संक्षिप्त सुझाव:
श्री महालक्ष्मी अष्टकम् का उद्देश्य केवल भोग-संपदा तक सीमित नहीं है — यह आन्तरिक शांति, विवेक और जीवन में संतुलन स्थापित करने का एक साधन भी है। पाठ के साथ मन में भक्तिपूर्ण भाव रखना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
अन्य— संक्षेप में, श्री महालक्ष्मी अष्टकम् भक्ति, श्रद्धा और विश्वास से किया गया एक ऐसा स्तोत्र है जो भक्त के जीवन में धन, ऐश्वर्य, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
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