शिव अभिलाषाष्टक स्तोत्रम्...
शिवभक्त विश्वानर की धर्मपत्नी शुचिष्मति ने अपने पति से भगवान शिव के समान पुत्र की याचना की। विश्वानर ने पत्नी की भावना को जानकर भगवान शिव की आराधना हेतु काशी को प्रस्थान किया। विश्वानर ने काशी पहुँच कर लिंगस्वरूप भगवन शिव की कठिन पूजा करने लगे एक वर्ष की कठिन साधना के बाद उनको शिवलिंग के मध्य शिव स्वरुप आठ वर्ष का बालक दिखायी पड़ा,उस अष्टवर्षीय बालक की उन्होंने “अभिलाषाष्टक स्तोत्र” के द्वारा स्तुति की,स्तुति से प्रसन्न होकर भगवन शिव ने विश्वानर से वर मांगने को कहा, विश्वानर ने कहा आप सब जानते हैं,आप इच्छानुसार वर प्रदान करें। भगवान शिव ने विश्वानर से कहा तुम दोनों की अभिलाषा है कि मैं आप के पुत्र रूप में जन्म लु, भगवान् शङ्कर प्रसन्न हो कर वरदान के फलस्वरूप भगवान शिव शुचिष्मति के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया।
विश्वानर के बालक का नाम ब्रह्मा जी ने गृहपति रखा। नारद जी ने बालक के विषय में बताया कि,बारह वर्ष की अवस्था में इसे बिजली और अग्नि से भय की संभावना है। गृहपति अपने पिता जी से कहे,मैं काशी जाकर मृत्युञ्जय की आराधना करके महाकाल को भी जीत लूँगा,और उन्होने काशी जाकर शिवलिंग की स्थापना कर काल को जीत लिया विश्वानर ने एक वर्ष तक फलाहार,जलाहार एवं वायु का सेवन कर “शिव अभिलाषाष्टक स्तोत्र”के द्वारा पुत्र रत्न की प्राप्ति की। अतः संतान के इच्छुक व्यक्ति एक वर्ष तक नित्य 108 बार आठ श्लोक का पाठ करके पुत्र की प्राप्ति कर सकते हैं पुत्र की प्राप्ति पितरों के ऋण से मुक्त करती है,अतएव प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए एक धार्मिक पुत्र की प्राप्ति करें, जो इस अभिलाषाष्टक स्तोत्र के द्वारा पूर्ण हो सकती है।
॥ ॐ नमः शिवाय ॥
॥ श्री शिव अभिलाषाष्टक स्तोत्र ॥
एक ब्रह्मवाद्वितीय समस्तं सत्यं सत्यं नेह नानास्ति किञ्चित्।
एको रुद्रो न द्वितीयोऽवतस्थे तस्मादेक त्वां प्रपद्ये महेशम्॥१॥
एक: कर्ता हि विश्वस्य शम्भो नाना रूपेष्वेकरूपोऽस्परूपः।
यद्वत्प्रत्यस्वर्क एको ऽप्यनेकस्तस्मान्नान्यं विनेश प्रपद्ये॥२॥
रज्जौ सर्पः शुक्तिकायां च रूप्यं नैरः पुरस्तन्मृगाख्ये मरीची।
यत्तद्वद् विश्वगेष प्रपञ्चो यस्मिन् ज्ञाते तं प्रपद्ये महेशम् ॥३॥
तोये शैत्यं दाहकत्वं च वहन तापो मानौ शीतभानी प्रसादः।
पुष्पे गन्धों दुग्धमध्ये च सर्पिर्यत्तच्छम्भो त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये ॥४॥
शब्द गृहणास्यश्रवास्त्वं हि जिधेरप्राणस्त्वं व्यंनिरायासि दूरात्।
व्यक्षः पश्यैस्त्वं रसज्ञोऽप्यजिह्वः करत्वां सम्यग् वेत्त्यतस्त्वां प्रपद्ये ॥५॥
नो वेदस्त्वामीश साक्षादि वेद नो या विष्णुनों विधाताखिलस्य।
नो योगीन्द्रा नेन्द्रमुख्याश्च देवा भक्तो वेद त्वामतस्त्वा प्रपद्ये ॥६॥
नो ते गोत्र नेश जन्मापि नाख्या नो वा रूपं नैव शील न देशः।
इत्यंभूतोऽपीश्वरस्तवं त्रिलोक्याः सर्वान् कामान् पूरयेस्तद् भजे त्वाम् ॥७॥
त्वत्तः सर्व त्वं हि सर्व स्मरारे त्वं गौरीशस्त्वं च नग्नोऽतिशान्तः।
त्वं वै वृद्धस्त्वं युवा त्वं च बालस्तत्किं यत्त्वं नास्यतस्त्वां नतोऽस्मि ॥८॥
पुत्र की प्राप्ति के लिए अभिलाषाष्टक स्तोत्र का पूरे एक वर्ष तक यदि १०८ बार पाठ सम्भव न हो सके तो ८ या २८ बार प्रतिदिन पाठ कर मनुष्य अपनी अभिलाषा भगवान् शिव की कृपा से पूर्ण कर सकता है।
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