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Maa\Ganga\Shri Ganga Stotram-माँ गंगा स्तोत्रम्

माँ गंगास्तोत्रम् — पूरा पाठ, अर्थ और फलश्रुति

माँ गंगास्तोत्रम्...

गंगा नदी को सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसे माँ गंगा या गंगे के नाम से सम्मानित किया जाता है। गंगा में स्नान, पूजा और स्तोत्रों का पाठ करने से भक्त को आध्यात्मिक शांति, मानसिक संतुलन और भक्ति भाव में वृद्धि होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गंगा नदी का स्नान पापों को नष्ट करने वाला और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।

|| माँ गंगास्तोत्रम् ||

रोगं शोकं तापं पापं

हर मे भगवति कुमति-कलापम्।

त्रिभुवनसारे वसुधाहारे

त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ ९ ॥

अलकानन्दे परमानन्दे

कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये।

तव तट-निकटे यस्य निवासः

खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥ १० ॥

वरमिह नीरे कमठो मीनः

किं वा तीरे शरटः क्षीणः।

अथवा शृपचो मलिनो दीन-सत्त्वः

न हि दूरे नृपति-कुलिनः ॥ ११ ॥

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये

देवि द्रवमयि मुनिवर-वन्द्ये।

गङ्गास्तवमिमममलम् नित्यं

पठति च यः शृणुयात्स सुखी स्यात् ॥ १२ ॥

येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां

भवति सदा सुख-मुक्तिः।

मधुराकान्ता-पञ्झटिकाभिः

परमानन्द-कलितललिताभिः ॥ १३ ॥

गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं

वाञ्छित-फलदं विमलं सारम्।

शङ्कर-सेवक-शङ्कर-रचितं

पठति सुखी स्त्व इति च समाप्तः ॥ १४ ॥

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे

त्रिभुवन-तारिणि तरल-तरङ्गे।

शङ्कर-मौलिविहारिणि विमले

मम मतिरस्तु तव पद-कमले ॥

पाठ और फलश्रुति:

माँ गंगा स्तोत्रम् का पाठ श्रद्धा और भक्ति भाव से करना चाहिए। नियमित पाठ से भक्त के मन में शांति, विश्वास और आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास होता है।

यह स्तुति भक्त को मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती है, जीवन में बाधाओं और नकारात्मक प्रभावों को दूर करती है और भक्ति भाव को मजबूत बनाती है।

गंगा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति की धार्मिक आस्था और भक्ति दोनों प्रबल होती हैं।

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