जपेंगे गायत्री मंत्र तो होंगे फायदे...
गायत्री मंत्र सर्वप्रथम ऋग्वेद में उद्धृत हुआ है। इसके ऋषि विश्वामित्र हैं। चारों वेदों में गायत्री मंत्र का उल्लेख किया गया है। और देवता सविता हैं। वैसे तो यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के 18 मंत्रों में केवल एक है, माना जाता है कि इस मंत्र में इतनी शक्ति है कि नियमित तीन बार इसका जप करने वाले व्यक्ति के आस-पास नकारात्मक शक्तियां नहीं आती हैं।
गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं। उनमें 8 अक्षरों के तीन चरण हैं। किंतु ब्राह्मण ग्रंथों में और कालांतर के समस्त साहित्य में इन अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप इस प्रकार स्थिर हुआ:
ॐ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो न: प्रचोदयात्।
भावार्थ-"हम उस परम तेजस्वी, पूजनीय, सविता देव (सूर्य स्वरूप परमात्मा) का ध्यान करते हैं, जो हमारे अंतःकरण और बुद्धि को सत्य, ज्ञान और विवेक के मार्ग पर प्रेरित करें।"
गायत्री मंत्र का हिंदी में अर्थ:
ॐ – परमात्मा का पवित्र नाम (सर्वव्यापक ईश्वर)
भूः – पृथ्वी लोक (शरीर),
भुवः – अंतरिक्ष लोक (प्राण),
स्वः – स्वर्ग लोक (मन/चेतना)
तत् – वह (परम शक्ति)
सवितुः – सविता देव (सूर्य रूपी ईश्वर)
वरेण्यं – पूजनीय / वंदनीय
भर्गः – तेज / पवित्र प्रकाश
देवस्य – उस दिव्य देव का
धीमहि – हम ध्यान करते हैं
धियः – बुद्धियाँ (हमारी बुद्धि)
यः – जो (परमात्मा)
नः – हमारी
प्रचोदयात् – प्रेरित करें / जाग्रत करें
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