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Shri Ganesha\Pratahsmarana\Ganesh Pratah Smaranam Stotram

श्रीगणेशप्रातःस्मरणम् | BHAKTI GYAN

श्री गणेश प्रातः स्मरण स्तोत्र...

श्रीगणेश प्रातः स्मरणम् स्तोत्र के पाठ के साथ साथ गणेश चालीसा और गणेश स्तुति का भी पाठ करने से बहुत लाभ मिलता है, नियमित रुप से पाठ करने से मनोकामना भी पूर्ण होती है। और साधक के जीवन में रोग, भय, दोष, शोक, डर दूर रहता है साथ ही गणेश जी की पूजा करने से आयु, यश, बल, बुदि और ज्ञान में वृद्धि होती है।
याद रखे इस श्रीगणेश प्रातः स्मरणम् स्तोत्र पाठ को करने से पूर्व अपना पवित्रता बनाये रखे। इससे मनुष्य को जीवन में बहुत अधिक लाभ प्राप्त होता है, साथ ही उसकी इच्छा की भी पूर्ति होती है।

卐 श्रीगणेशप्रातःस्मरणम् 卐

॥ श्री गणेशाय नमः ॥

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ हेरम्ब उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते ।
सर्वदा सर्वतः सर्वविघ्नान्मां पाहि विघ्नप ॥
आयुरारोग्यमैश्वर्यं माम् प्रदाय स्वभक्तिमत् ।
स्वेक्षणाशक्तिराद्या ते दक्षिणा पातु मं सदा ॥
प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम् ।
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड-माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् ॥ १॥
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमान-मिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम् ।
तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयोः शिवाय ॥ २॥
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्तशोक-दावानलं गणविभुं वरकुञ्जरास्यम् ।
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाह-मुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य ॥ ३॥
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं सदा साम्राज्यदायकम् ।
प्रातरुत्थाय सततं यः पठेत्प्रयतः पुमान् ॥ ४॥
कराग्रे सत्प्रभा बुद्धिः कमला करमध्यगा ।
करमूले मयूरेशः प्रभाते करदर्शनम् ॥
ज्ञानरूपवराहस्य पत्नि कर्मस्वरूपिणि ।
सर्वाधारे धरे नौमि पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥
तारश्रीनर्मदादूर्वाशमीमन्दारमोदित ।
द्विरदास्य मयूरेश दुःस्वप्नहर पाहि माम् ॥
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
गणनाथसरस्वतीरविशुक्रबृहस्पतीन् ।
पञ्चैतानि स्मरेन्नित्यं वेदवाणीप्रवृत्तये ॥
विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान् ।
सर्स्वतीं प्रणौम्यादौ सर्वकार्यार्थसिद्धये ॥
अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुरासुरैः ।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥
अगजानपद्मार्कं गजाननमहिर्निशम् ।
अनेकदं तं भक्तानामेकदन्तमुपास्महे ॥
नमस्तस्मै गणेशाय यत्कण्डः पुष्करायते ।
यदाभोगधनध्वान्तो नीलकण्ठस्य ताण्डवे ॥
कार्यं मे सिद्धिमायातु प्रसन्ने त्वयि धातरि ।
विघ्नानि नाशमायान्तु सर्वाणि सुरनायक ॥
नमस्ते विघ्नसंहर्त्रे नमस्ते ईप्सितप्रद ।
नमस्ते देवदेवेश नमस्ते गणनायक ॥

॥ इति श्रीगणेशप्रातःस्मरणम् ॥

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