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Sri Hanuman\Srihanumadashottarashatanamastotram

श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्...

श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का पाठ करने से हनुमान जी के साथ ही साथ रामजी की भी कृपा रहती है। इसलिए ही तो कहते हैं कि, जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करहिं सब कोई। भगवन हनुमानजी के साथ रामजी की कृपा पाने के लिए हर दिन पाठ करें - खास तौर पर मंगलवार और शनिवार को...

॥ श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥

नारद उवाच:

सर्वशास्त्रार्थतत्त्वज्ञ सर्वदेवनमस्कृत ।
यत्त्वया कथितं पूर्वं रामचन्द्रेण धीमता ॥१॥
स्तोत्रं समस्तपापघ्नं श्रुत्वा धन्योऽस्मि पद्मज ।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि लोकानां हितकाम्यया ॥२॥
वायोरंशावतरणमाहात्म्यं सर्वकामदम् ।
वद मे विस्तराद्ब्रह्मन् देवगुह्यमनुत्तमम् ॥३॥
इति पृष्टो नारदेन ब्रह्मा लोकपितामहः ।
नमस्कृत्य जगन्नाथं लक्ष्मीकान्तं परात्परम् ॥४॥
प्रोवाच वायोर्माहात्म्यं नारदाय महात्मने ।
यच्छ्रुत्वा सर्वसौभाग्यं प्राप्नुवन्ति जनाः सदा ॥५॥

ब्रह्मोवाच:

इदं रहस्यं पापघ्नं वायोरष्टोत्तरं शतम् ।
विष्णुना लोकनाथेन रमायै कथितं पुरा ॥६॥
रमा मामाह यद्दिव्यं तत्ते वक्ष्यामि नारद ।
इदं पवित्रं पापघ्नं श्रद्धया हृदि धारय ॥७॥
हनुमानञ्जनापुत्रो वायुसूनुर्महाबलः ।
रामदूतो हरिश्रेष्ठः सूरी केसरीनन्दनः ॥
सूर्यश्रेष्ठो महाकायो वज्री वज्रप्रहारवान् ।
महासत्त्वो महारूपो ब्रह्मण्यो ब्राह्मणप्रियः ॥९॥
मुख्यप्राणो महाभीमः पूर्णप्रज्ञो महागुरुः ।
ब्रह्मचारी वृक्षधरः पुण्यः श्रीरामकिङ्करः ॥१०॥
सीताशोकविनाशी च सिंहिकाप्राणनाशकः ।
मैनाकगर्वभङ्गश्च छायाग्रहनिवारकः ॥११॥
लङ्कामोक्षप्रदो देवः सीतामार्गणतत्परः ।
रामाङ्गुलिप्रदाता च सीताहर्षविवर्धनः ॥१२॥
महारूपधरो दिव्यो ह्यशोकवननाशकः ।
मन्त्रिपुत्रहरो वीरः पञ्चसेनाग्रमर्दनः ॥१३॥
दशकण्ठसुतघ्नश्च ब्रह्मास्त्रवशगोऽव्ययः ।
दशास्यसल्लापपरो लङ्कापुरविदाहकः ॥१४॥
तीर्णाब्धिः कपिराजश्च कपियूथप्ररञ्जकः ।
चूडामणिप्रदाता च श्रीवश्यः प्रियदर्शकः ॥१५॥
कौपीनकुण्डलधरः कनकाङ्गदभूषणः ।
सर्वशास्त्रसुसम्पन्नः सर्वज्ञो ज्ञानदोत्तमः ॥१६॥
मुख्यप्राणो महावेगः शब्दशास्त्रविशारदः ।
बुद्धिमान् सर्वलोकेशः सुरेशो लोकरञ्जकः ॥१७॥
लोकनाथो महादर्पः सर्वभूतभयापहः ।
रामवाहनरूपश्च सञ्जीवाचलभेदकः ॥१८॥
कपीनां प्राणदाता च लक्ष्मणप्राणरक्षकः ।
रामपादसमीपस्थो लोहितास्यो महाहनुः ॥१९॥
रामसन्देशकर्ता च भरतानन्दवर्धनः ।
रामाभिषेकलोलश्च रामकार्यधुरन्धरः ॥२०॥
कुन्तीगर्भसमुत्पन्नो भीमो भीमपराक्रमः ।
लाक्षागृहाद्विनिर्मुक्तो हिडिम्बासुरमर्दनः ॥२१॥
धर्मानुजः पाण्डुपुत्रो धनञ्जयसहायवान् ।
बकासुरवधोद्युक्तस्तद्ग्रामपरिरक्षकः ॥२२॥
भिक्षाहाररतो नित्यं कुलालगृहमध्यगः ।
पाञ्चाल्युद्वाहसञ्जातसम्मोदो बहुकान्तिमान् ॥२३॥
विराटनगरे गूढचरः कीचकमर्दनः ।
दुर्योधननिहन्ता च जरासन्धविमर्दनः ॥२४॥
सौगन्धिकापहर्ता च द्रौपदीप्राणवल्लभः ।
पूर्णबोधो व्यासशिष्यो यतिरूपो महामतिः ॥२५॥
दुर्वादिगजसिंहस्य तर्कशास्त्रस्य खण्डकः ।
बौद्धागमविभेत्ता च साङ्ख्यशास्त्रस्य दूषकः ॥२६॥
द्वैतशास्त्रप्रणेता च वेदव्यासमतानुगः ।
पूर्णानन्दः पूर्णसत्वः पूर्णवैराग्यसागरः ॥२७॥
इति श्रुत्वा नारदस्तु वायोश्चरितमद्भुतम् ।
मुदा परमया युक्तः स्तोतुं समुपचक्रमे ॥२८॥
रामावतारजाताय हनुमद्रूपिणे नमः ।
वासुदेवस्य भक्ताय भीमसेनाय ते नमः ॥२९॥
वेदव्यासमतोद्धारकर्त्रे पूर्णसुखाय च ।
दुर्वादिध्वान्तचन्द्राय पूर्णबोधाय ते नमः ॥३०॥
गुरुराजाय धन्याय कञ्जनेत्राय ते नमः ।
दिव्यरूपाय शान्ताय नमस्ते यतिरूपिणे ॥३१॥
स्वान्तस्थवासुदेवाय सच्चित्ताय नमो नमः ।
अज्ञानतिमिरार्काय व्यासशिष्याय ते नमः ॥३२॥
अथाभिवन्द्य पितरं ब्रह्माणं नारदो मुनिः ।
परिक्रम्य विनिर्यातो वासुदेवं हरिं स्मरन् ॥३३॥
अष्टोत्तरशतं दिव्यं वायुसूनोर्महात्मनः ।
यः पठेच्छ्रद्धया नित्यं सर्वबन्धात् प्रमुच्यते ॥३४॥
सर्वरोगविनिर्मुक्तः सर्वपापैर्न लिप्यते ।
राजवश्यं भवेन्नित्यं स्तोत्रस्यास्य प्रभावतः ॥३५॥
भूतग्रहनिवृत्तिश्च प्रजावृद्धिश्च जायते ।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं बलं कीर्तिं लभेत् पुमान् ॥३६॥
यः पठेद्वायुचरितं भक्त्या परमया युतः ।
सर्वज्ञानसमायुक्तः स याति परमं पदम् ॥३७॥

श्रीपद्मोत्तरखण्डतः श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

हनुमान जी की पूजा में हनुमान चालीसा का पाठ, बजरंग बाण और संकटमोचन अष्टक का विशेष महत्व है।
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