माँ भुवनेश्वरी कवच...
!! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !!माँ भुवनेश्वरी - संसार भर के ऐश्वयर् की स्वामिनी आदिशक्ति दुर्गा माता के दस महाविद्याओं का पंचम स्वरूप है जिस रूप में इन होने त्रिदेवो को दर्शन दिये थे। माँ भुवनेश्वरी ही शताक्षी और शाकंभरी देवी के नाम से विख्यात है। माँ भुवनेश्वरी कवच का पाठ करने वाले व्यक्ति को यश, सुख, ऐश्वर्य, संपन्नता, सफलता, आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्त होता है तथा मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
माँ भुवनेश्वरी कवच
ह्रीं बीजं मे शिर: पातु भुवनेश्वरी ललाटकम् ।
ऐं पातु दक्षनेत्रं मे ह्रीं पातु वामलोचनम् ।।
श्रीं पातु दक्षकणर्ण मे त्रिवर्णात्मा महेश्वरी ।
वामकर्ण सदा पातु ऐं घ्राणं पातु मे सदा ।।
ह्रीं पातु वदनं देवी ऐं पातु रसनां मम ।
श्रीं स्कन्धौ पातु नियतं ह्रीं भुजौ पातु सर्वदा ।।
क्लीं करौ त्रिपुरेशानी त्रिपुरैश्वर्यदायिनी ।।
ॐ पातु ह्रदयं ह्रीं मे मध्यदेशं सदाऽवतु ।
क्री पातु नाभिदेशं सा त्र्यक्षरी भुवनेश्वरी ।।
सर्वबीजप्रदा पृष्ठं पातु सर्ववशंकरी ।
ह्रीं पातु गुदे शं मे नमो भगवती कटिम् ।।
माहेश्वरी सदा पातु सक्थिनी जानुयुग्मकम् ।
अन्नपूर्णा सदा पातु स्वाहा पातु पदद्वयम् ।।
सप्तदशाक्षरी पायाद्न्नपूर्णात्मिका परा ।
तारं माया रमा काम: षोडशार्णा तत: परम् ।।
शिरस्स्था सर्वदा पातु विंशत्यर्नात्मिका परा ।
तारदुर्गे युगं रक्षिणी स्वाहेति दशाक्षरी ।।
जयदुर्गा धनश्यामा पातु मां पूर्वतो मुदा ।
मायावीजादिका चैषा दशार्णा च परा तथा ।।
उत्तप्तकांचनाभासा जयदुर्गाननेऽवतु ।
तारं ह्रीं दुं दुर्गायै नमोऽष्टार्णात्मिका परा ।।
शंखचक्रधनुर्बाणधरा मां दक्षिणेऽवतु ।
महिषामर्दिनी स्वाहा वसुवर्णात्मिका परा ।।
नैऋत्यां सर्वदा पातु महिषासुरनाशिनी ।
माया पद्धावती स्वाहा सप्तार्ना परिकीर्तिता ।।
पद्धावती पद्धसंस्था पश्चिमे मां सदावतु ।
पाशानकुशपुटा माये हि परमेश्वरि स्वाहा ।।
त्रयोदशार्णा भुवनेश्वरीधया अश्वारुढ़ाननेवतु ।
सरस्वती पञ्चशरे नित्यक्लिन्ने मदद्रवे ।।
स्वाहा रव्यक्षरी विद्या मामुत्तरे सदावतु ।
तारं माया तु कवचं खं रक्षेत् सदा वधू: ।।
हूँ क्षे फट् महाविद्या द्वाद्शार्णाखिलप्रदा ।
त्वरिताष्टाहिभि: पायाच्छिवकोणे सदा च माम् ।।
ऐं क्लीं सौ: सा ततो वाला मामूधर्वदेशतोऽवतु ।
बिन्द्वन्ता भैरवी बाला भूमौ च मां सदावतु ।।
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